Clean Air Project: हरियाणा में प्रदूषण खत्म करने का 3600 करोड़ का प्लान, जानें वर्ल्ड बैंक क्यों दे रहा है पैसा

Haryana Clean Air Project (HCAPSD) के लिए 3600 करोड़ रुपये मंजूर, वर्ल्ड बैंक करेगा मदद। जानें इस 5-10 साल के प्लान से परिवहन, उद्योग और पराली प्रदूषण कैसे होगा कम।

Clean Air Project: हरियाणा में प्रदूषण खत्म करने का 3600 करोड़ का प्लान, जानें वर्ल्ड बैंक क्यों दे रहा है पैसा
हरियाणा क्लीन एयर प्रोजेक्ट (HCAPSD) का ग्राफिकल रिप्रेजेंटेशन

Clean Air Project: हरियाणा में प्रदूषण खत्म करने का 3600 करोड़ का प्लान, जानें वर्ल्ड बैंक क्यों दे रहा है पैसा

चंडीगढ़: हरियाणा में, खास तौर पर NCR के जिलों में, हर साल सर्दी के मौसम में दम घोंटते प्रदूषण से निपटने के लिए राज्य सरकार ने अब तक का सबसे बड़ा और महत्वाकांक्षी कदम उठाया है। सरकार ने "हरियाणा स्वच्छ वायु परियोजना" (Haryana Clean Air Project for Sustainable Development - HCAPSD) को मंजूरी दे दी है। यह एक बहु-क्षेत्रीय (multi-sectoral) योजना है, जिसे विश्व बैंक (World Bank) की वित्तीय सहायता से लागू किया जाएगा।

इस परियोजना का पैमाना बहुत बड़ा है। शुरुआती चरण के लिए लगभग 3,600 करोड़ रुपये (कुछ रिपोर्टों में 3,500 करोड़) का बजट रखा गया है। यह परियोजना अगले 5 से 6 वर्षों (2024-25 से 2029-30) तक चलेगी, जबकि कुछ सूत्रों का कहना है कि यह एक 10-वर्षीय, 10,000 करोड़ रुपये के व्यापक प्लान का हिस्सा है।

यह प्रोजेक्ट सिर्फ सड़कों पर पानी का छिड़काव या कुछ समय के लिए निर्माण कार्य रोकने तक सीमित नहीं है। यह हरियाणा में प्रदूषण के हर स्रोत—चाहे वह गाड़ियों का धुआं हो, फैक्ट्रियों की चिमनी हो, या खेतों में जलती पराली हो—पर एक साथ काम करेगा।

इस लेख में हम इस पूरे प्रोजेक्ट का गहराई से विश्लेषण करेंगे: यह क्या है, इसमें वर्ल्ड बैंक की क्या भूमिका है, आपके शहर में क्या बदलेगा, और क्या यह योजना वाकई हरियाणा की हवा को साफ कर पाएगी?


HCAPSD क्या है और हरियाणा को इसकी क्यों पड़ी जरूरत?

हरियाणा, विशेष रूप से गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत और पानीपत जैसे इसके NCR जिले, दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में अक्सर टॉप पर रहते हैं। इसका असर न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, बल्कि यह आर्थिक विकास में भी एक बड़ी बाधा है।

इसी चुनौती से निपटने के लिए हरियाणा स्वच्छ वायु परियोजना (HCAPSD) को एक समग्र समाधान के तौर पर डिजाइन किया गया है।

यह कोई एक विभाग की योजना नहीं है। इसे परिवहन, कृषि, उद्योग, शहरी स्थानीय निकाय और पर्यावरण विभाग मिलकर लागू करेंगे। इसका मुख्य उद्देश्य वायु गुणवत्ता में वैज्ञानिक और स्थायी सुधार लाना है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस परियोजना का लक्ष्य 2031 तक वायु गुणवत्ता में स्पष्ट सुधार दिखाना है।

क्यों पड़ी जरूरत?
  • गंभीर AQI: हरियाणा के कई शहरों का औसत वार्षिक AQI (Air Quality Index) राष्ट्रीय मानकों से कई गुना खराब रहता है।
  • स्वास्थ्य संकट: प्रदूषण के कारण अस्थमा, फेफड़ों के रोग और हृदय संबंधी बीमारियों में भारी वृद्धि हुई है।
  • आर्थिक नुकसान: खराब हवा के कारण हर साल काम के घंटों का नुकसान, स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि और निवेश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

3600 करोड़ का प्लान: विश्व बैंक और 'ARJUN' की क्या है भूमिका?

इतनी बड़ी परियोजना के लिए पैसा और प्रबंधन दो सबसे बड़ी चुनौतियां होती हैं। हरियाणा सरकार ने इन दोनों का समाधान निकाला है।

विश्व बैंक की भूमिका (Funding):
इस परियोजना की गंभीरता और डिजाइन को देखते हुए विश्व बैंक (World Bank) ने इसे वित्तीय सहायता देने पर सहमति जताई है। पहले चरण के लिए लगभग 3,600 करोड़ रुपये की राशि को मंजूरी दी गई है। विश्व बैंक की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि परियोजना में फंड की कमी न हो और इसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार लागू किया जाए।

'ARJUN' का प्रबंधन (Governance):
इस जटिल परियोजना को चलाने के लिए सरकार ने एक विशेष संस्था (SPV - Special Purpose Vehicle) का गठन किया है। सूत्रों के अनुसार (haryanaekhabar.com के हवाले से), इस SPV को 'ARJUN' (AI for Resilient Jobs, Urban Air Quality, and Next-Generation Skills) नाम दिया गया है।

यह संस्था एक CEO (जे. गणेशन) के नेतृत्व में काम करेगी और सभी 5-6 संबंधित विभागों के बीच समन्वय (Coordination) सुनिश्चित करेगी। इसका काम परियोजना के लक्ष्यों को समय पर पूरा करना और फंड के सही इस्तेमाल की निगरानी करना है।

परिवहन सेक्टर का कायाकल्प: 500 ई-बसें और 17 लाख पुराने वाहन होंगे बाहर

परिवहन, विशेषकर पुराने डीजल वाहन, NCR में प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत हैं। HCAPSD का सबसे बड़ा फोकस परिवहन सेक्टर को 'ग्रीन' बनाने पर है।

1. इलेक्ट्रिक बसों का बेड़ा:

  • परियोजना के पहले चरण में NCR के तीन प्रमुख शहरों के लिए 500 नई इलेक्ट्रिक बसें खरीदी जाएंगी।
  • गुरुग्राम: 200 ई-बसें
  • फरीदाबाद: 200 ई-बसें
  • सोनीपत: 100 ई-बसें
  • ये बसें सिटी बस सेवा का हिस्सा बनेंगी, जिससे न सिर्फ प्रदूषण कम होगा बल्कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी मजबूत होगा।

2. ई-चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर:

  • ई-वाहनों को बढ़ावा देने के लिए, NCR के जिलों में सार्वजनिक स्थानों पर 200 ई-चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए जाएंगे। ये स्टेशन प्राइवेट एजेंसियों को वित्तीय सहायता देकर बनवाए जाएंगे।

3. पुराने वाहनों को हटाना:

  • यह परियोजना का सबसे साहसिक कदम हो सकता है। योजना के तहत, सड़कों पर चल रहे लगभग 17 लाख पुराने (Over-aged) वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का लक्ष्य है।
  • इन वाहनों की टेस्टिंग के लिए ऑटोमेटेड टेस्टिंग स्टेशन (ATS) का इस्तेमाल किया जाएगा और उन्हें स्क्रैप करने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

4. इलेक्ट्रिक ऑटो को प्रोत्साहन:

  • पुराने डीजल ऑटो को बदलने के लिए सरकार 10,000 इलेक्ट्रिक ऑटो खरीदने के लिए प्रोत्साहन राशि देगी।
  • रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह प्रोत्साहन राशि 15,000 रुपये से 35,000 रुपये प्रति वाहन हो सकती है। 30,000 पुराने ऑटो को स्क्रैप करने पर 15,000 रुपये तक का अतिरिक्त प्रोत्साहन भी दिया जा सकता है।

उद्योगों पर लगेगी लगाम: क्लीन फ्यूल और CEMS से कैसे थमेगा धुआं?

हरियाणा के औद्योगिक क्लस्टर, जैसे पानीपत, फरीदाबाद और गुरुग्राम, वायु प्रदूषण में बड़ा योगदान देते हैं।

  • क्लीन फ्यूल पर स्विच: परियोजना के तहत, उद्योगों को प्रदूषणकारी ईंधन (जैसे कोयला, पेट-कोक, तेल बॉयलर) छोड़कर स्वच्छ ईंधन (जैसे PNG, बायोमास) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए MSME (लघु और मध्यम उद्योगों) को वित्तीय सहायता भी दी जा सकती है।
  • सख्त निगरानी: लगभग 300 अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों में CEMS (Continuous Emission Monitoring System) डिवाइस लगाए जाएंगे।
  • ये डिवाइस फैक्ट्रियों की चिमनी से निकलने वाले धुएं का रियल-टाइम डेटा सीधे कंट्रोल रूम को भेजेंगे। यदि कोई इंडस्ट्री मानकों से अधिक प्रदूषण करती है, तो उसे तुरंत पकड़ा जा सकेगा।

किसानों की सबसे बड़ी चिंता 'पराली' का क्या होगा?

सर्दी शुरू होते ही हरियाणा और पंजाब में पराली जलना (Stubble Burning) दिल्ली-NCR में 'गैस चैंबर' जैसी स्थिति पैदा कर देता है। HCAPSD ने पराली प्रबंधन के लिए एक स्थायी समाधान का खाका तैयार किया है।

  • इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन: सरकार किसानों को पराली को खेत में ही नष्ट करने (In-situ, जैसे डीकंपोजर) और खेत से बाहर ले जाकर उसका उपयोग करने (Ex-situ) के लिए प्रोत्साहित करेगी।
  • पराली का व्यावसायिक उपयोग: जलाई जाने वाली पराली को 'पैसे' में बदलने की योजना है।
    • पराली को बायोमास संयंत्रों (Biomass Plants) तक पहुंचाया जाएगा, जहां इससे बिजली बनाई जा सके।
    • पराली का उपयोग ब्रिकेंटिंग (Briquettes) बनाने में किया जाएगा, जो उद्योगों में कोयले का विकल्प बन सकता है।
    • इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOCL) के पानीपत स्थित 2G इथेनॉल प्लांट को भी पराली की सप्लाई सुनिश्चित की जाएगी, ताकि पराली से इथेनॉल बनाया जा सके।

सरकार का लक्ष्य 2030 तक राज्य में 'जीरो स्टबल बर्निंग' (शून्य पराली दहन) हासिल करना है, जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है।

शहरी प्रदूषण पर सीधा वार: धूल, कूड़ा और ग्रीन बेल्ट का मास्टर प्लान

सड़कों की धूल, निर्माण कार्य और कूड़ा जलाना भी AQI को बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।

  • धूल प्रबंधन: सड़कों से धूल कम करने के लिए एंटी-स्मॉग गन और मैकेनाइज्ड रोड स्वीपर (मशीनों से सफाई) का इस्तेमाल बढ़ाया जाएगा।
  • अपशिष्ट प्रबंधन: शहरों में कूड़ा जलाने (Waste Burning) को रोकने के लिए इंटीग्रेटेड सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट स्थापित किए जाएंगे।
  • ग्रीनिंग: शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण सोखने के लिए ग्रीन बेल्ट और बायोडायवर्सिटी पार्क बनाने पर भी जोर दिया जाएगा।

चुनौतियां और हकीकत: क्या यह प्लान जमीन पर उतरेगा?

कागजों पर यह योजना बेहतरीन दिखती है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं होगा।

सबसे बड़ी चुनौती: निगरानी तंत्र
इस पूरे प्लान की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम प्रदूषण को कितनी सटीकता से माप सकते हैं। यहीं पर एक चिंताजनक तथ्य सामने आता है। 'द ट्रिब्यून' की एक हालिया रिपोर्ट ने खुलासा किया कि हरियाणा में कुल 72 एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों में से केवल 30 ही चालू हालत में हैं।

अगर प्रदूषण मापने वाले मीटर ही काम नहीं करेंगे, तो यह कैसे पता चलेगा कि किस इलाके में कितना सुधार हुआ या किस इंडस्ट्री ने नियमों का उल्लंघन किया? सरकार को सबसे पहले अपने निगरानी तंत्र को 100% दुरुस्त करना होगा।

अन्य चुनौतियां:

  • अंतर-विभागीय समन्वय: 5-6 विभागों को एक साथ लाकर काम कराना नौकरशाही के लिए हमेशा एक बड़ी चुनौती रहा है। 'ARJUN' SPV को इस बाधा को पार करना होगा।
  • पुराने वाहन: 17 लाख पुराने वाहनों को सड़क से हटाना एक बहुत बड़ा काम है, जिसमें राजनीतिक और सामाजिक विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है।
  • किसानों का सहयोग: पराली का स्थायी समाधान तब तक नहीं हो सकता, जब तक किसान पूरी तरह से सहयोग न करें और उन्हें पराली न जलाने का एक ठोस आर्थिक विकल्प न मिल जाए।

निष्कर्ष और आगे की राह

हरियाणा सरकार का विश्व बैंक की मदद से 3600 करोड़ रुपये का 'क्लीन एयर प्रोजेक्ट' निःसंदेह अब तक का सबसे ठोस और वैज्ञानिक कदम है। यह पहली बार है कि सरकार ने पैचवर्क (छोटे-मोटे उपाय) की जगह प्रदूषण के हर स्रोत (परिवहन, उद्योग, कृषि, शहरी) पर एक साथ काम करने की योजना बनाई है।

500 ई-बसों का आना, 17 लाख पुराने वाहनों को हटाना और उद्योगों पर CEMS से निगरानी जैसे कदम क्रांतिकारी साबित हो सकते हैं।

हालांकि, इस योजना की सफलता इसके क्रियान्वयन (Implementation) पर टिकी है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि मॉनitoring स्टेशन काम करें, विभिन्न विभागों में तालमेल हो और योजना का पैसा सही जगह खर्च हो।

अगर यह प्रोजेक्ट अगले 5-10 वर्षों में अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेता है, तो यह न केवल हरियाणा के लाखों लोगों को साफ हवा में सांस लेने का मौका देगा, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक 'मॉडल' बन सकता है कि कैसे विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाया जाता है।

नीरज अहलावत | संस्थापक एवं मुख्य संपादक — Dainik Reality News Dainik Reality News में हम खबरों को केवल प्रकाशित नहीं करते, समझते हैं, विश्लेषित करते हैं, और तथ्यों की पुष्टि के बाद ही आपके सामने रखते हैं। हमारा विश्वास है कि पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं—एक ज़िम्मेदारी है। इसी विचारधारा के साथ नीरज अहलावत, Dainik Reality News के संस्थापक एवं मुख्य संपादक, वर्तमान डिजिटल पत्रकारिता जगत में एक प्रखर और विश्वसनीय नाम के रूप में स्थापित हुए हैं। पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया में 10+ वर्षों का गहन अनुभव रखते हुए उन्होंने राजनीति, अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और सामाजिक मुद्दों पर लगातार शोध-आधारित रिपोर्टिंग की है। उनके लेख वस्तुनिष्ठता, तथ्य-आधारित विश्लेषण और संतुलित दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। नी‍रज का मानना है कि "खबर सिर्फ़ लिखी नहीं जाती, उसकी आत्मा समझनी होती है।" इसी सोच ने Dainik Reality News को पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की राह पर आगे बढ़ाया। नीरज अहलावत न सिर्फ़ एक संपादक हैं, बल्कि Digital Strategy, SEO एवं Web Media Growth के विशेषज्ञ भी हैं। आधुनिक तकनीक, एल्गोरिथ्म और यूज़र व्यवहार की गहराई को समझते हुए वे न्यूज़ इकोसिस्टम को नए युग की पत्रकारिता के साथ जोड़ते हैं — ताकि ज़रूरी मुद्दे केवल लिखे ना जाएँ, लोगों तक पहुँचें भी। प्रमुख कार्यक्षेत्र एवं विशेषज्ञता ✔ राजनीतिक एवं आर्थिक विश्लेषण ✔ डिजिटल पत्रकारिता एवं रिपोर्टिंग ✔ मीडिया रणनीति, SEO और कंटेंट विस्तार ✔ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समसामयिक विषय ✔ तथ्यात्मक अनुसंधान एवं निष्पक्ष लेखन Articles by Author

Clean Air Project: हरियाणा में प्रदूषण खत्म करने का 3600 करोड़ का प्लान, जानें वर्ल्ड बैंक क्यों दे रहा है पैसा

Haryana Clean Air Project (HCAPSD) के लिए 3600 करोड़ रुपये मंजूर, वर्ल्ड बैंक करेगा मदद। जानें इस 5-10 साल के प्लान से परिवहन, उद्योग और पराली प्रदूषण कैसे होगा कम।

Clean Air Project: हरियाणा में प्रदूषण खत्म करने का 3600 करोड़ का प्लान, जानें वर्ल्ड बैंक क्यों दे रहा है पैसा
हरियाणा क्लीन एयर प्रोजेक्ट (HCAPSD) का ग्राफिकल रिप्रेजेंटेशन

Clean Air Project: हरियाणा में प्रदूषण खत्म करने का 3600 करोड़ का प्लान, जानें वर्ल्ड बैंक क्यों दे रहा है पैसा

चंडीगढ़: हरियाणा में, खास तौर पर NCR के जिलों में, हर साल सर्दी के मौसम में दम घोंटते प्रदूषण से निपटने के लिए राज्य सरकार ने अब तक का सबसे बड़ा और महत्वाकांक्षी कदम उठाया है। सरकार ने "हरियाणा स्वच्छ वायु परियोजना" (Haryana Clean Air Project for Sustainable Development - HCAPSD) को मंजूरी दे दी है। यह एक बहु-क्षेत्रीय (multi-sectoral) योजना है, जिसे विश्व बैंक (World Bank) की वित्तीय सहायता से लागू किया जाएगा।

इस परियोजना का पैमाना बहुत बड़ा है। शुरुआती चरण के लिए लगभग 3,600 करोड़ रुपये (कुछ रिपोर्टों में 3,500 करोड़) का बजट रखा गया है। यह परियोजना अगले 5 से 6 वर्षों (2024-25 से 2029-30) तक चलेगी, जबकि कुछ सूत्रों का कहना है कि यह एक 10-वर्षीय, 10,000 करोड़ रुपये के व्यापक प्लान का हिस्सा है।

यह प्रोजेक्ट सिर्फ सड़कों पर पानी का छिड़काव या कुछ समय के लिए निर्माण कार्य रोकने तक सीमित नहीं है। यह हरियाणा में प्रदूषण के हर स्रोत—चाहे वह गाड़ियों का धुआं हो, फैक्ट्रियों की चिमनी हो, या खेतों में जलती पराली हो—पर एक साथ काम करेगा।

इस लेख में हम इस पूरे प्रोजेक्ट का गहराई से विश्लेषण करेंगे: यह क्या है, इसमें वर्ल्ड बैंक की क्या भूमिका है, आपके शहर में क्या बदलेगा, और क्या यह योजना वाकई हरियाणा की हवा को साफ कर पाएगी?


HCAPSD क्या है और हरियाणा को इसकी क्यों पड़ी जरूरत?

हरियाणा, विशेष रूप से गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत और पानीपत जैसे इसके NCR जिले, दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में अक्सर टॉप पर रहते हैं। इसका असर न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, बल्कि यह आर्थिक विकास में भी एक बड़ी बाधा है।

इसी चुनौती से निपटने के लिए हरियाणा स्वच्छ वायु परियोजना (HCAPSD) को एक समग्र समाधान के तौर पर डिजाइन किया गया है।

यह कोई एक विभाग की योजना नहीं है। इसे परिवहन, कृषि, उद्योग, शहरी स्थानीय निकाय और पर्यावरण विभाग मिलकर लागू करेंगे। इसका मुख्य उद्देश्य वायु गुणवत्ता में वैज्ञानिक और स्थायी सुधार लाना है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस परियोजना का लक्ष्य 2031 तक वायु गुणवत्ता में स्पष्ट सुधार दिखाना है।

क्यों पड़ी जरूरत?
  • गंभीर AQI: हरियाणा के कई शहरों का औसत वार्षिक AQI (Air Quality Index) राष्ट्रीय मानकों से कई गुना खराब रहता है।
  • स्वास्थ्य संकट: प्रदूषण के कारण अस्थमा, फेफड़ों के रोग और हृदय संबंधी बीमारियों में भारी वृद्धि हुई है।
  • आर्थिक नुकसान: खराब हवा के कारण हर साल काम के घंटों का नुकसान, स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि और निवेश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

3600 करोड़ का प्लान: विश्व बैंक और 'ARJUN' की क्या है भूमिका?

इतनी बड़ी परियोजना के लिए पैसा और प्रबंधन दो सबसे बड़ी चुनौतियां होती हैं। हरियाणा सरकार ने इन दोनों का समाधान निकाला है।

विश्व बैंक की भूमिका (Funding):
इस परियोजना की गंभीरता और डिजाइन को देखते हुए विश्व बैंक (World Bank) ने इसे वित्तीय सहायता देने पर सहमति जताई है। पहले चरण के लिए लगभग 3,600 करोड़ रुपये की राशि को मंजूरी दी गई है। विश्व बैंक की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि परियोजना में फंड की कमी न हो और इसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार लागू किया जाए।

'ARJUN' का प्रबंधन (Governance):
इस जटिल परियोजना को चलाने के लिए सरकार ने एक विशेष संस्था (SPV - Special Purpose Vehicle) का गठन किया है। सूत्रों के अनुसार (haryanaekhabar.com के हवाले से), इस SPV को 'ARJUN' (AI for Resilient Jobs, Urban Air Quality, and Next-Generation Skills) नाम दिया गया है।

यह संस्था एक CEO (जे. गणेशन) के नेतृत्व में काम करेगी और सभी 5-6 संबंधित विभागों के बीच समन्वय (Coordination) सुनिश्चित करेगी। इसका काम परियोजना के लक्ष्यों को समय पर पूरा करना और फंड के सही इस्तेमाल की निगरानी करना है।

परिवहन सेक्टर का कायाकल्प: 500 ई-बसें और 17 लाख पुराने वाहन होंगे बाहर

परिवहन, विशेषकर पुराने डीजल वाहन, NCR में प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत हैं। HCAPSD का सबसे बड़ा फोकस परिवहन सेक्टर को 'ग्रीन' बनाने पर है।

1. इलेक्ट्रिक बसों का बेड़ा:

  • परियोजना के पहले चरण में NCR के तीन प्रमुख शहरों के लिए 500 नई इलेक्ट्रिक बसें खरीदी जाएंगी।
  • गुरुग्राम: 200 ई-बसें
  • फरीदाबाद: 200 ई-बसें
  • सोनीपत: 100 ई-बसें
  • ये बसें सिटी बस सेवा का हिस्सा बनेंगी, जिससे न सिर्फ प्रदूषण कम होगा बल्कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी मजबूत होगा।

2. ई-चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर:

  • ई-वाहनों को बढ़ावा देने के लिए, NCR के जिलों में सार्वजनिक स्थानों पर 200 ई-चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए जाएंगे। ये स्टेशन प्राइवेट एजेंसियों को वित्तीय सहायता देकर बनवाए जाएंगे।

3. पुराने वाहनों को हटाना:

  • यह परियोजना का सबसे साहसिक कदम हो सकता है। योजना के तहत, सड़कों पर चल रहे लगभग 17 लाख पुराने (Over-aged) वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का लक्ष्य है।
  • इन वाहनों की टेस्टिंग के लिए ऑटोमेटेड टेस्टिंग स्टेशन (ATS) का इस्तेमाल किया जाएगा और उन्हें स्क्रैप करने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

4. इलेक्ट्रिक ऑटो को प्रोत्साहन:

  • पुराने डीजल ऑटो को बदलने के लिए सरकार 10,000 इलेक्ट्रिक ऑटो खरीदने के लिए प्रोत्साहन राशि देगी।
  • रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह प्रोत्साहन राशि 15,000 रुपये से 35,000 रुपये प्रति वाहन हो सकती है। 30,000 पुराने ऑटो को स्क्रैप करने पर 15,000 रुपये तक का अतिरिक्त प्रोत्साहन भी दिया जा सकता है।

उद्योगों पर लगेगी लगाम: क्लीन फ्यूल और CEMS से कैसे थमेगा धुआं?

हरियाणा के औद्योगिक क्लस्टर, जैसे पानीपत, फरीदाबाद और गुरुग्राम, वायु प्रदूषण में बड़ा योगदान देते हैं।

  • क्लीन फ्यूल पर स्विच: परियोजना के तहत, उद्योगों को प्रदूषणकारी ईंधन (जैसे कोयला, पेट-कोक, तेल बॉयलर) छोड़कर स्वच्छ ईंधन (जैसे PNG, बायोमास) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए MSME (लघु और मध्यम उद्योगों) को वित्तीय सहायता भी दी जा सकती है।
  • सख्त निगरानी: लगभग 300 अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों में CEMS (Continuous Emission Monitoring System) डिवाइस लगाए जाएंगे।
  • ये डिवाइस फैक्ट्रियों की चिमनी से निकलने वाले धुएं का रियल-टाइम डेटा सीधे कंट्रोल रूम को भेजेंगे। यदि कोई इंडस्ट्री मानकों से अधिक प्रदूषण करती है, तो उसे तुरंत पकड़ा जा सकेगा।

किसानों की सबसे बड़ी चिंता 'पराली' का क्या होगा?

सर्दी शुरू होते ही हरियाणा और पंजाब में पराली जलना (Stubble Burning) दिल्ली-NCR में 'गैस चैंबर' जैसी स्थिति पैदा कर देता है। HCAPSD ने पराली प्रबंधन के लिए एक स्थायी समाधान का खाका तैयार किया है।

  • इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन: सरकार किसानों को पराली को खेत में ही नष्ट करने (In-situ, जैसे डीकंपोजर) और खेत से बाहर ले जाकर उसका उपयोग करने (Ex-situ) के लिए प्रोत्साहित करेगी।
  • पराली का व्यावसायिक उपयोग: जलाई जाने वाली पराली को 'पैसे' में बदलने की योजना है।
    • पराली को बायोमास संयंत्रों (Biomass Plants) तक पहुंचाया जाएगा, जहां इससे बिजली बनाई जा सके।
    • पराली का उपयोग ब्रिकेंटिंग (Briquettes) बनाने में किया जाएगा, जो उद्योगों में कोयले का विकल्प बन सकता है।
    • इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOCL) के पानीपत स्थित 2G इथेनॉल प्लांट को भी पराली की सप्लाई सुनिश्चित की जाएगी, ताकि पराली से इथेनॉल बनाया जा सके।

सरकार का लक्ष्य 2030 तक राज्य में 'जीरो स्टबल बर्निंग' (शून्य पराली दहन) हासिल करना है, जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है।

शहरी प्रदूषण पर सीधा वार: धूल, कूड़ा और ग्रीन बेल्ट का मास्टर प्लान

सड़कों की धूल, निर्माण कार्य और कूड़ा जलाना भी AQI को बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।

  • धूल प्रबंधन: सड़कों से धूल कम करने के लिए एंटी-स्मॉग गन और मैकेनाइज्ड रोड स्वीपर (मशीनों से सफाई) का इस्तेमाल बढ़ाया जाएगा।
  • अपशिष्ट प्रबंधन: शहरों में कूड़ा जलाने (Waste Burning) को रोकने के लिए इंटीग्रेटेड सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट स्थापित किए जाएंगे।
  • ग्रीनिंग: शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण सोखने के लिए ग्रीन बेल्ट और बायोडायवर्सिटी पार्क बनाने पर भी जोर दिया जाएगा।

चुनौतियां और हकीकत: क्या यह प्लान जमीन पर उतरेगा?

कागजों पर यह योजना बेहतरीन दिखती है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं होगा।

सबसे बड़ी चुनौती: निगरानी तंत्र
इस पूरे प्लान की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम प्रदूषण को कितनी सटीकता से माप सकते हैं। यहीं पर एक चिंताजनक तथ्य सामने आता है। 'द ट्रिब्यून' की एक हालिया रिपोर्ट ने खुलासा किया कि हरियाणा में कुल 72 एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों में से केवल 30 ही चालू हालत में हैं।

अगर प्रदूषण मापने वाले मीटर ही काम नहीं करेंगे, तो यह कैसे पता चलेगा कि किस इलाके में कितना सुधार हुआ या किस इंडस्ट्री ने नियमों का उल्लंघन किया? सरकार को सबसे पहले अपने निगरानी तंत्र को 100% दुरुस्त करना होगा।

अन्य चुनौतियां:

  • अंतर-विभागीय समन्वय: 5-6 विभागों को एक साथ लाकर काम कराना नौकरशाही के लिए हमेशा एक बड़ी चुनौती रहा है। 'ARJUN' SPV को इस बाधा को पार करना होगा।
  • पुराने वाहन: 17 लाख पुराने वाहनों को सड़क से हटाना एक बहुत बड़ा काम है, जिसमें राजनीतिक और सामाजिक विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है।
  • किसानों का सहयोग: पराली का स्थायी समाधान तब तक नहीं हो सकता, जब तक किसान पूरी तरह से सहयोग न करें और उन्हें पराली न जलाने का एक ठोस आर्थिक विकल्प न मिल जाए।

निष्कर्ष और आगे की राह

हरियाणा सरकार का विश्व बैंक की मदद से 3600 करोड़ रुपये का 'क्लीन एयर प्रोजेक्ट' निःसंदेह अब तक का सबसे ठोस और वैज्ञानिक कदम है। यह पहली बार है कि सरकार ने पैचवर्क (छोटे-मोटे उपाय) की जगह प्रदूषण के हर स्रोत (परिवहन, उद्योग, कृषि, शहरी) पर एक साथ काम करने की योजना बनाई है।

500 ई-बसों का आना, 17 लाख पुराने वाहनों को हटाना और उद्योगों पर CEMS से निगरानी जैसे कदम क्रांतिकारी साबित हो सकते हैं।

हालांकि, इस योजना की सफलता इसके क्रियान्वयन (Implementation) पर टिकी है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि मॉनitoring स्टेशन काम करें, विभिन्न विभागों में तालमेल हो और योजना का पैसा सही जगह खर्च हो।

अगर यह प्रोजेक्ट अगले 5-10 वर्षों में अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेता है, तो यह न केवल हरियाणा के लाखों लोगों को साफ हवा में सांस लेने का मौका देगा, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक 'मॉडल' बन सकता है कि कैसे विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाया जाता है।

नीरज अहलावत | संस्थापक एवं मुख्य संपादक — Dainik Reality News Dainik Reality News में हम खबरों को केवल प्रकाशित नहीं करते, समझते हैं, विश्लेषित करते हैं, और तथ्यों की पुष्टि के बाद ही आपके सामने रखते हैं। हमारा विश्वास है कि पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं—एक ज़िम्मेदारी है। इसी विचारधारा के साथ नीरज अहलावत, Dainik Reality News के संस्थापक एवं मुख्य संपादक, वर्तमान डिजिटल पत्रकारिता जगत में एक प्रखर और विश्वसनीय नाम के रूप में स्थापित हुए हैं। पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया में 10+ वर्षों का गहन अनुभव रखते हुए उन्होंने राजनीति, अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और सामाजिक मुद्दों पर लगातार शोध-आधारित रिपोर्टिंग की है। उनके लेख वस्तुनिष्ठता, तथ्य-आधारित विश्लेषण और संतुलित दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। नी‍रज का मानना है कि "खबर सिर्फ़ लिखी नहीं जाती, उसकी आत्मा समझनी होती है।" इसी सोच ने Dainik Reality News को पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की राह पर आगे बढ़ाया। नीरज अहलावत न सिर्फ़ एक संपादक हैं, बल्कि Digital Strategy, SEO एवं Web Media Growth के विशेषज्ञ भी हैं। आधुनिक तकनीक, एल्गोरिथ्म और यूज़र व्यवहार की गहराई को समझते हुए वे न्यूज़ इकोसिस्टम को नए युग की पत्रकारिता के साथ जोड़ते हैं — ताकि ज़रूरी मुद्दे केवल लिखे ना जाएँ, लोगों तक पहुँचें भी। प्रमुख कार्यक्षेत्र एवं विशेषज्ञता ✔ राजनीतिक एवं आर्थिक विश्लेषण ✔ डिजिटल पत्रकारिता एवं रिपोर्टिंग ✔ मीडिया रणनीति, SEO और कंटेंट विस्तार ✔ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समसामयिक विषय ✔ तथ्यात्मक अनुसंधान एवं निष्पक्ष लेखन Articles by Author
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