Haryana Millet News क्या है, राशन डिपो पर क्यों नहीं मिलेगा बाजरा, जानें पूरी वजह
Haryana Millet News: हरियाणा के राशन कार्ड धारकों को इस बार डिपो पर बाजरा नहीं मिलेगा। जानें खाद्य विभाग ने क्यों लिया यह बड़ा फैसला और अब गेहूं-चीनी के साथ क्या मिलेगा।
Haryana Millet News क्या है, राशन डिपो पर क्यों नहीं मिलेगा बाजरा, जानें पूरी वजह
Haryana Millet News: हरियाणा में राशन कार्ड धारकों के लिए एक बड़ी खबर है। सर्दियों की शुरुआत के साथ, लाखों परिवार जो डिपो से बाजरा मिलने का इंतजार कर रहे थे, उन्हें इस बार मायूसी हाथ लगेगी। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए इस बार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत बाजरे का वितरण नहीं करने का निर्णय लिया है। यह फैसला सरकारी खरीद एजेंसियों द्वारा बाजरे की खरीद न किए जाने के कारण हुआ है।
1. Haryana Ration Depot: क्या है पूरा मामला और क्यों चर्चा में है?
हरियाणा में हर साल सर्दियों के मौसम में, विशेषकर नवंबर से, सरकार राशन डिपो के माध्यम से BPL (गरीबी रेखा से नीचे) और AAY (अंत्योदय अन्न योजना) कार्ड धारकों को गेहूं के साथ-साथ बाजरे का भी वितरण करती है। बाजरा, जिसे सर्दियों का प्रमुख खाद्यान्न माना जाता है, ग्रामीण और शहरी गरीब आबादी के आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस साल, यानी 2025 में, राज्य सरकार ने इस नीति को बदलते हुए बाजरे का वितरण नहीं करने का फैसला किया है। यह खबर इसलिए बड़ी है क्योंकि यह सीधे तौर पर लाखों लाभार्थियों की रसोई और उनके मासिक राशन बजट को प्रभावित करेगी। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने सभी जिला मुख्यालयों को इस संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी कर दिए हैं और डिपो पर लगे POS (प्वाइंट ऑफ सेल) मशीनों से भी बाजरा वितरण का विकल्प हटा दिया गया है।
2. आम लोगों पर कैसे पड़ेगा बाजरा बंद होने का असर?
इस फैसले का सबसे सीधा असर उन लाखों गरीब परिवारों पर पड़ेगा जो PDS प्रणाली पर निर्भर हैं। सर्दियों में बाजरे की तासीर गर्म होने के कारण इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है और यह ग्रामीण अंचलों में मुख्य भोजन का हिस्सा होता है। अब जब डिपो पर बाजरा नहीं मिलेगा, तो इन परिवारों को अपनी जरूरत पूरी करने के लिए खुले बाजार का रुख करना पड़ेगा, जहां बाजरे की कीमतें सरकारी दरों की तुलना में काफी अधिक हैं। इससे उनके मासिक बजट पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। कई लाभार्थी, जो केवल गेहूं और बाजरे के मिश्रण पर निर्भर थे, अब उन्हें केवल गेहूं से ही काम चलाना होगा, जो उनकी खान-पान की आदतों और पोषण संबंधी जरूरतों को प्रभावित कर सकता है। विशेष रूप से, यह उन परिवारों के लिए एक झटका है जो पिछले कई सालों से सर्दियों में सरकारी बाजरे पर निर्भर थे।
3. सरकार और खाद्य विभाग की आधिकारिक जानकारी क्या है?
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग, हरियाणा ने इस फैसले के पीछे का स्पष्ट कारण बताया है। विभाग के अनुसार, इस बार PDS प्रणाली के तहत वितरण के लिए सरकारी खरीद एजेंसियों द्वारा बाजरे की खरीद ही नहीं की गई है। रिपोर्टों के मुताबिक, इसकी मुख्य वजह बाजरे की गुणवत्ता रही। बताया जा रहा है कि सरकारी एजेंसियों (जैसे HAFED, HWC) ने खरीद के लिए जो बाजरे के सैंपल लैब में भेजे थे, वे तय मानकों पर खरे नहीं उतरे और गुणवत्ता जांच (Quality Test) में फेल हो गए। खराब क्वालिटी का बाजरा खरीदकर उसे PDS में बांटना संभव नहीं था, इसलिए एजेंसियों ने बाजरे की खरीद नहीं की। जब सरकारी गोदामों में बाजरे का स्टॉक ही नहीं है, तो उसका वितरण भी संभव नहीं है। इसलिए विभाग ने स्पष्ट किया है कि इस बार लाभार्थियों को केवल गेहूं, चीनी और सरसों का तेल ही वितरित किया जाएगा।
4. Market और Industry पर इस फैसले का क्या प्रभाव पड़ेगा?
सरकार द्वारा PDS के लिए बाजरे की खरीद न करने के फैसले का असर खुले बाजार और किसानों पर भी पड़ना तय है। जब सरकार एक बड़े खरीदार के तौर पर बाजार से हट जाती है, तो इससे बाजरे की कीमतों पर दबाव पड़ सकता है। हालांकि, दूसरी ओर, PDS लाभार्थी जो अब तक डिपो पर निर्भर थे, वे अपनी जरूरत पूरी करने के लिए खुले बाजार में आएंगे। इससे बाजरे की खुदरा मांग (Retail Demand) में अचानक तेजी आ सकती है। इस बढ़ी हुई मांग का फायदा उठाकर खुदरा विक्रेता कीमतें बढ़ा सकते हैं। किसानों के दृष्टिकोण से, जिन्होंने यह सोचकर बाजरे की बुआई की थी कि सरकार MSP पर खरीद करेगी, उन्हें निराशा हाथ लग सकती है। हालांकि, गुणवत्ता मानकों पर खरा न उतरना एक बड़ी समस्या है, जो भविष्य में किसानों को अपनी फसल की गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रेरित कर सकती है।
5. Ground Reality: डिपो धारकों और लाभार्थियों का क्या कहना है?
जब हमने इस फैसले पर कुछ डिपो धारकों और लाभार्थियों से बात की, तो मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। भिवानी और फतेहाबाद के कई लाभार्थियों ने कहा कि वे हर सर्दी में बाजरे की रोटी खाते हैं और सरकार का यह फैसला निराशाजनक है। उनका कहना है कि अब उन्हें महंगा बाजरा बाजार से खरीदना पड़ेगा। वहीं, कुछ डिपो धारकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह फैसला उनके लिए राहत भरा है। उनका कहना था कि पिछले कुछ समय से बाजरे के वितरण को लेकर POS मशीनों में काफी दिक्कतें आ रही थीं और कई बार लाभार्थियों को बाजरा लेने के लिए बाध्य होना पड़ता था, जबकि वे केवल गेहूं लेना चाहते थे। हालांकि, विभाग ने अब POS मशीन से विकल्प हटाकर इस भ्रम को पूरी तरह खत्म कर दिया है।
6. Expert Analysis: आगे क्या बदल सकता है और क्या हैं संभावनाएं?
कृषि और खाद्य नीति विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक अस्थायी कदम हो सकता है, जो इस साल की फसल की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। यदि सरकार गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर पाई, तो उसके पास खरीद न करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। यह घटना 'मोटे अनाज' (Millets) को बढ़ावा देने की राष्ट्रीय नीति के बीच एक चुनौती को भी दर्शाती है। यदि सरकार भविष्य में बाजरे को PDS में स्थायी रूप से रखना चाहती है, तो उसे किसानों को बेहतर गुणवत्ता वाले बीज और तकनीक प्रदान करने पर ध्यान देना होगा, ताकि फसल गुणवत्ता मानकों पर खरी उतरे। विश्लेषकों का मानना है कि सरकार को इस कमी को पूरा करने के लिए या तो लाभार्थियों को गेहूं का कोटा बढ़ाना चाहिए या कोई अन्य वैकल्पिक पौष्टिक अनाज प्रदान करने पर विचार करना चाहिए, ताकि PDS प्रणाली की विश्वसनीयता बनी रहे।
CONCLUSION
अंत में, यह स्पष्ट है कि हरियाणा में राशन कार्ड धारकों को इस सर्दी में बाजरे का स्वाद नहीं मिल पाएगा। सरकार का यह फैसला भले ही गुणवत्ता मानकों और खरीद प्रक्रिया की मजबूरियों के कारण लिया गया हो, लेकिन इसका सीधा असर लाखों गरीब परिवारों के मासिक राशन पर पड़ेगा। अब देखना यह होगा कि क्या सरकार इस कमी को पूरा करने के लिए कोई वैकल्पिक कदम उठाती है, या फिर लाभार्थियों को खुले बाजार की महंगाई का सामना करने के लिए छोड़ दिया जाता है। फिलहाल, इस महीने से लाभार्थियों को केवल गेहूं से ही संतोष करना पड़ेगा।