Hanuman Chalisa: जानिए अर्थ, जप के फायदे और बजरंगबली को प्रसन्न करने का सही तरीका
Hanuman Chalisa का संपूर्ण हिंदी अर्थ और पाठ करने के चमत्कारी लाभ। बल, बुद्धि, विद्या और मोक्ष पाने के लिए करें बजरंगबली का स्मरण। संकटों से मुक्ति दिलाएंगे हनुमान जी।
By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 24 Oct 2025
हनुमान चालीसा पाठ से पहले मन की पवित्रता और उसके लाभ
यह एक स्थापित सत्य है कि महाबली हनुमान, जिन्हें रुद्र अवतार भी कहा जाता है, अपने भक्तों की ज़रा सी प्रार्थना पर शीघ्र ही प्रसन्न होकर दर्शन देते हैं और उनकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। बजरंगबली के भक्तों को संसार में किसी भी प्रकार के भूत-पिशाच या बुरी आत्मा का भय नहीं रहता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि श्री हनुमान के नाम का निरंतर जप समस्त दुखों का निवारण कर सकता है और जो कुछ भी भक्त चाहते हैं, वह उन्हें प्राप्त हो सकता है। हालांकि, इस जप की पूर्ण फलदायकता तभी प्राप्त होती है जब भक्त उन जख्मों (पंक्तियों) का अर्थ भी समझते हैं; ऐसा करना और भी ज़्यादा जरूरी और फायदेमंद होता है। ज्ञान की इस गहराई को समझने के लिए, हनुमान चालीसा के पाठ की शुरुआत से पहले महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा दिए गए संदेश को समझना आवश्यक है। दोहे के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से पूर्व अपने मन को पवित्र करना अत्यंत आवश्यक है। जब हम अपने गुरु, माता-पिता, और भगवान को याद करते हैं, तो हमारा मन शांत हो जाता है और यही शांति हमें पाठ के लिए तैयार करती है। इसके उपरांत, भगवान राम की महिमा का वर्णन करना भी अत्यधिक फलदायक माना जाता है। हनुमान चालीसा केवल भक्ति का मार्ग नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मार्ग है जिस पर चलकर भक्त स्वयं को रामदूत हनुमान को पूर्ण रूप से समर्पित कर देता है। सच्चे समर्पण के साथ, श्री हनुमान की कृपा से भक्त को बल, बुद्धि और विद्या प्राप्त होती है, और साथ ही बजरंगबली सारे पापों और कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं। यह समर्पण ही वह नींव है जिस पर भक्ति का महल खड़ा होता है, और यही कारण है कि पाठ के पूर्व के दोहे में तुलसीदास जी अपने गुरु के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को स्वच्छ और निर्मल करते हैं। इस निर्मल मन से ही वे श्री राम के दोष रहित यश (बिमल जस) का वर्णन करने की तैयारी करते हैं, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चार फल प्रदान करने वाला है। इस प्रकार, चालीसा की शुरुआत ही हमें यह सिखाती है कि भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों तरह के लाभ प्राप्त करने के लिए आंतरिक शुद्धि सर्वोपरि है।
1: हनुमान चालीसा के प्रथम दोहे का गहन विश्लेषण: गुरु चरण और राम महिमा
हनुमान चालीसा का प्रारम्भ दोहे के साथ होता है: "श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकू फल चारि।" इसके बाद "बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार॥" यह प्रारंभिक आह्वान चालीसा के आध्यात्मिक आधार को स्थापित करता है और हमें बताता है कि भक्ति मार्ग पर किस प्रकार आगे बढ़ना है। तुलसीदास जी इन पंक्तियों के माध्यम से स्पष्ट करते हैं कि वह सबसे पहले अपने गुरु को नमन करते हैं और उनके चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को साफ़ करते हैं। इस क्रिया का गहरा अर्थ यह है कि गुरु ही वह माध्यम है जो मन में व्याप्त अज्ञानता, विकार और दूषित विचारों को हटाकर उसे निर्मल बना सकता है। एक बार मन निर्मल हो जाने पर ही भक्त उस पवित्र कार्य के लिए तैयार होता है जिसके लिए वह चालीसा का पाठ कर रहा है। मन को निर्मल करने के बाद, तुलसीदास जी कहते हैं कि वह भगवान श्री राम के दोष रहित यश (बिमल जस) का वर्णन करेंगे। राम की यह महिमा सामान्य नहीं है, बल्कि यह वह है जो जीवन के चार परम लक्ष्य—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—रूपी चार फल प्रदान करने वाली है। यह चार फल जीवन के मूल उद्देश्य होते हैं और राम के यश का वर्णन करके ही इन चारों की प्राप्ति संभव हो पाती है। इसके बाद, तुलसीदास जी स्वयं को बुद्धिहीन मानते हुए, पूरे समर्पण के साथ, पवनपुत्र श्री Hanuman Chalisa का स्मरण करते हैं। यह स्वयं को बुद्धिहीन जानना या "बुद्धिहीन तनु जानिके" का भाव अहंकार का त्याग है; यह स्वीकार करना है कि मनुष्य अपनी सीमित बुद्धि से परमात्मा की असीम लीला को नहीं जान सकता। इसीलिए वे महावीर हनुमान से प्रार्थना करते हैं: "हे महावीर, मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें और मेरे सारे कष्ट, रोग और विकार हर लें"। इस प्रकार, यह दोहा न केवल हनुमान जी की स्तुति करता है, बल्कि यह भी स्थापित करता है कि सच्ची प्रार्थना के लिए गुरु की कृपा, राम की महिमा का ज्ञान, अहंकार का त्याग और शारीरिक व मानसिक शुद्धिकरण आवश्यक है। यह पाठ हनुमान चालीसा का पाठ कैसे करें के नैतिक और आध्यात्मिक पहलुओं को दर्शाता है, जिसमें बाहरी जप से पहले आंतरिक तैयारी को प्राथमिकता दी गई है।
2: हनुमान जी का स्वरूप, उनकी शक्ति और भक्तों को मिलने वाले वरदान
चालीसा की प्रारंभिक चौपाइयों में श्री हनुमान के अलौकिक स्वरूप और उनके अद्भुत गुणों का वर्णन किया गया है, जो उनकी दिव्यता और शक्ति को प्रकट करता है। "जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर" – इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि श्री हनुमान ज्ञान और गुणों के सागर हैं, और तीनों लोकों में वानरों के राजा (कपीस) के रूप में विख्यात हैं। उनकी जय-जयकार पूरे जगत में होती है क्योंकि वे तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाले हैं। उन्हें भगवान श्री राम के दूत (रामदूत) के रूप में जाना जाता है, जिनके बल की कोई तुलना नहीं है (अतुलित बल धामा)। माता अंजनी के पुत्र और पवनसुत के नाम से वे पूजे जाते हैं। उनकी शारीरिक क्षमता और वीरता का वर्णन "महावीर विक्रम बजरंगी" पंक्ति में मिलता है। वे महान वीर हैं, बलवान हैं, और उनका शरीर वज्र के समान है। यह वज्र के समान अंग ही उन्हें 'बजरंगी' नाम देता है, जो उनकी अविनाशी शक्ति का प्रतीक है। बजरंगबली की कृपा प्राप्त करने के लिए, भक्तों को उनके नैतिक गुणों को भी समझना चाहिए। श्री हनुमान केवल बल ही नहीं देते, बल्कि वे "कुमति निवार सुमति के संगी" हैं—अर्थात, वे खराब या नकारात्मक बुद्धि (कुमति) को दूर करते हैं और सद्बुद्धि (सुमति) प्रदान करने वाले हैं। यह गुण उन्हें केवल शारीरिक रक्षक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी बनाता है। उनका रूप भी अत्यंत आकर्षक और दिव्य है। उनका रंग सोने के समान है (कंचन बरन) और वे सुंदर वेश धारण करते हैं। उनके कानों में कुंडल उनकी शोभा बढ़ाते हैं, और वे हाथों में वज्र (यानी गदा) और ध्वजा धारण करते हैं। उनके कंधे पर मूंज जनेऊ उनकी शोभा को बढ़ाता है। इन सभी भौतिक और आध्यात्मिक गुणों के कारण, उनके तेज और प्रताप की वंदना पूरा जगत करता है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि श्री हनुमान भगवान शिव के अंश (शंकर सुवन) हैं और श्री केसरी के पुत्र (केसरीनंदन) हैं। यह उनके रुद्र अवतार होने के तथ्य को और पुष्ट करता है। चूंकि वे शिव के अंश हैं, इसलिए उनकी शक्ति अनंत है, और यही कारण है कि उनकी ललकार मात्र से तीनों लोक कांप उठते हैं। जो भक्त निरन्तर श्री हनुमान का नाम जपते हैं, उनके सारे रोग नष्ट हो जाते हैं और वे सारे दर्द हर लेते हैं। इसलिए, उनकी सेवा और स्मरण से सारे सुख प्राप्त हो जाते हैं, और किसी और देवता में ध्यान लगाने की आवश्यकता नहीं रह जाती।
3: पवनसुत की बुद्धिमत्ता, राम भक्ति और अतुलनीय पराक्रम के उदाहरण
श्री हनुमान जी न केवल बलवान हैं, बल्कि वे विद्वान, गुणी और अत्यंत चतुर (बुद्धिमान) भी हैं। उनका सबसे बड़ा गुण यह है कि वे भगवान श्री राम के कार्य को करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं। उनकी भक्ति इतनी गहरी है कि वे प्रभु श्री राम के चरित्र को सुनने के रसिक हैं (प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया), और उनके हृदय में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण निवास करते हैं। यह मान्यता है कि जहां कहीं भी रामकथा का आयोजन होता है, श्री हनुमान किसी न किसी रूप में वहां मौजूद रहकर कथा सुनते हैं। उनकी बुद्धिमत्ता और पराक्रम के अनेक उदाहरण चालीसा में दिए गए हैं, जो दर्शाते हैं कि असंभव समझे जाने वाले कार्यों को भी उन्होंने किस प्रकार सुगम बनाया। लंका विजय के दौरान, श्री हनुमान ने अनेक अद्भुत कार्य किए। उन्होंने सीता माता को अपना सूक्ष्म रूप धारण करके दिखाया। वहीं दूसरी ओर, उन्होंने विकराल रूप धारण करके लंका को जलाया। उन्होंने भीम रूप धारण करके असुरों का संहार किया और इस प्रकार भगवान श्री राम के सभी कार्यों को संवारा। इन कार्यों के अतिरिक्त, जब लक्ष्मण जी मूर्छित हुए, तब Hanuman Chalisa की पंक्तियाँ बताती हैं कि वे संजीवनी बूटी लेकर आए और लक्ष्मण के प्राण बचाए। इस अतुलनीय सेवा से प्रसन्न होकर भगवान श्री राम ने उन्हें खुशी से हृदय से लगा लिया। राम ने उनकी बहुत प्रशंसा की और उन्हें अपने भाई भरत के समान प्रिय बतलाया। जब राम ने हनुमान को गले लगाकर कहा कि उनका यश हज़ार मुखों से गाने योग्य है, तो इसका अर्थ था कि उनका गुणगान सिर्फ मनुष्य ही नहीं, बल्कि सनकादिक ऋषि, ब्रह्मा, नारद जी, सरस्वती जी और शेष जी (अहीसा) भी करते हैं। इतना ही नहीं, मृत्यु के देवता यम, धन के देवता कुबेर, और दसों दिशाओं के रक्षक दिगपाल भी उनके यश का गुणगान करने में असमर्थ हैं। ऐसे में कवि और विद्वान भला उनकी कीर्ति का वर्णन कैसे कर सकते हैं?। उनकी महानता का एक और प्रमाण यह है कि उन्होंने भगवान राम से मिलकर सुग्रीव पर उपकार किया, जिसके फलस्वरूप सुग्रीव को राज्य प्राप्त हुआ। इसके अलावा, विभीषण ने भी उनकी बात मानी और फलस्वरूप लंका का राजा बना, जिसे पूरा संसार जानता है। ये सारे कार्य उनकी रणनीतिक बुद्धिमत्ता और अतुलनीय बल का प्रमाण हैं।
4: चारों युगों में हनुमान जी का प्रताप और अष्ट सिद्धि नौ निधि के वरदाता होने का रहस्य
श्री हनुमान जी का प्रताप केवल त्रेता युग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सतयुग, द्वापर युग, त्रेता युग, और कलयुग—इन चारों युगों में प्रसिद्ध है। उनका प्रकाश समस्त संसार में व्याप्त है। इस चालीसा में उनके सबसे बड़े पराक्रमों में से एक का वर्णन किया गया है: "जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू"। वह सूर्य, जो यहां से हज़ारों योजन की दूरी पर स्थित है और जिस तक पहुँचने में हज़ारों युग लग सकते हैं, उस सूर्य को Hanuman Chalisa के अनुसार, उन्होंने मीठा फल समझकर निगल लिया था। उनके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है। जब उन्होंने भगवान श्री राम की अंगूठी को मुख में रखकर विशाल समुद्र को लांघा, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं था। इस संसार के जितने भी मुश्किल (दुर्गम) माने जाने वाले काम हैं, वे उनकी कृपा (अनुग्रह) से बहुत आसान हो जाते हैं। श्री हनुमान को भक्त शिरोमणि और राम के दुलारे के रूप में जाना जाता है, जो साधु-संतों के रखवाले हैं और असुरों का विनाश करने वाले हैं। उनकी सबसे बड़ी शक्ति यह है कि उन्हें स्वयं जानकी माता (सीता माता) ने वरदान दिया है। इस वरदान के कारण, वे आठों सिद्धियां (अष्ट सिद्धि) और नौ निधियां (नौ निधि) किसी को भी प्रदान करने में सक्षम हैं। यह उन्हें समस्त देवी-देवताओं में एक अद्वितीय स्थान दिलाता है, क्योंकि उनके पास राम नाम का रसायन है। वे सदा से भगवान श्री राम के सेवक रहे हैं। श्री राम के द्वार पर वे रक्षक की तरह तैनात हैं। इसीलिए उनकी आज्ञा या अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति भगवान राम तक नहीं पहुँच सकता। समस्त प्रकार के सुख उनकी शरण लेते हैं। जो उनकी रक्षा में होता है, उसे किसी भी तरह से डरने की ज़रूरत नहीं होती। उनका तेज इतना प्रबल है कि उसे केवल वे स्वयं ही संभाल सकते हैं। हनुमान चालीसा का निरंतर पाठ करने वाले व्यक्ति को सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है। भूत-पिशाच भी उनके नाम का स्मरण करने वाले के पास आने की हिम्मत नहीं करते। मन, वचन और कर्म से उनका ध्यान लगाने वाला हर संकट से मुक्त हो जाता है।
5: हनुमान जी की सेवा से मोक्ष की प्राप्ति और संकटों का निवारण
श्री हनुमान की भक्ति का अंतिम फल केवल भौतिक सुखों या संकटों से मुक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मोक्ष और वैकुंठ धाम की ओर ले जाता है। यह एक प्रमाणित सत्य है कि आपके भजन करके ही भगवान राम को प्राप्त किया जा सकता है। उनके स्मरण मात्र से ही जन्मों-जन्मों के पाप और दुख मिट जाते हैं। उनकी शरण लेकर ही व्यक्ति मृत्यु के बाद भगवान श्री राम के धाम (वैकुंठ) तक जा सकता है। वह स्थान जहां जन्म लेने मात्र से ही व्यक्ति 'हरि-भक्त' कहलाता है। जब श्री हनुमान की सेवा और स्मरण से ही सभी सुखों की प्राप्ति हो जाती है, तब अन्य देवी-देवताओं में ध्यान लगाने की आवश्यकता नहीं रहती है। तपस्वी राजा भगवान श्री रामचंद्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, और हनुमान जी ने उनके सभी कार्य संवारे हैं। इसलिए जो कोई भी सच्चे मन से अपने मन की इच्छा उनके सामने रखता है, वह अनंत और असीम जीवन का फल प्राप्त करता है। यह फल 'महा सुख' की श्रेणी में आता है, जिसका अर्थ है मोक्ष की प्राप्ति। जो कोई भी बलवान वीर हनुमान (हनुमत बलबीरा) का स्मरण करता है, उसके सारे संकट कट जाते हैं, और सारी पीड़ा, सारे दुख और तकलीफें मिट जाती हैं। इसी कारण, चालीसा का समापन भक्त शिरोमणि श्री बजरंगबली की कृपा के आह्वान से होता है: "जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।"। भक्त उनके रक्षक स्वामी के रूप में जय-जयकार करते हैं और गुरुदेव की तरह उन पर कृपा करने की विनती करते हैं। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी स्वयं को सदा भगवान श्री राम का सेवक बताते हुए यह कामना करते हैं कि हे स्वामी, आप मेरे हृदय में निवास करें। यह हृदय में निवास का आह्वान ही सच्चे और पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। जो भक्त इस चालीसा का सौ बार पाठ करता है, उसके सारे बंधन और कष्ट दूर हो जाते हैं, और उसे महा सुख की प्राप्ति होती है। यह एक ऐसा धार्मिक समाचार है जो हर युग में प्रासंगिक है, कि जो कोई भी इस Hanuman Chalisa का पाठ करता है, उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उसे सिद्धियां प्राप्त होती हैं। स्वयं शंकर भगवान (गौरीसा) इसके साक्षी हैं। यह सिद्ध करता है कि भक्ति का यह मार्ग ईश्वरीय रूप से अनुमोदित है और ज्ञान की गहराई से भरा है।
Conclusion: संकट हरण मंगल मूर्ति रूप हनुमान का स्मरण: भविष्य की संभावनाएं
उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर, यह स्पष्ट है कि हनुमान चालीसा केवल 40 चौपाइयों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह जीवन के चार फलों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) की प्राप्ति, बल, बुद्धि और विद्या के वरदान और समस्त संकटों से मुक्ति का एक सुनिश्चित मार्ग है। श्री हनुमान जी (रुद्र अवतार) ज्ञान और गुणों के सागर हैं, जो कुमति को दूर करके सुमति प्रदान करते हैं और उनकी कृपा से संसार के सभी दुर्गम कार्य सुगम हो जाते हैं। वे राम के द्वार के रक्षक हैं और अष्ट सिद्धि तथा नौ निधि के दाता हैं। भविष्य में, जैसे-जैसे कलयुग में कष्ट और चुनौतियाँ बढ़ेंगी, मन, वचन और कर्म से हनुमान जी का ध्यान और चालीसा का पाठ अधिक महत्वपूर्ण होता जाएगा। यह पाठ हमें केवल मोक्ष ही नहीं, बल्कि अनंत और असीम जीवन का फल भी प्रदान करता है। जो भक्त 31 दिन तक सात बार इस पाठ को लगातार करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है। संकट हरण, मंगल मूर्ति रूप पवनसुत, राम, लक्ष्मण और सीता सहित हमारे हृदय में सदैव निवास करें, यही परम लक्ष्य है।
FAQs (5 Q&A):
1. Hanuman Chalisa का पाठ क्यों करना चाहिए? हनुमान चालीसा का पाठ इसलिए करना चाहिए क्योंकि हनुमान जी (रुद्र अवतार) भक्तों की प्रार्थना पर जल्द ही उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसका जप सारे दुखों को मिटा सकता है। हनुमान जी के भक्त को भूत-पिशाच या बुरी आत्मा का डर नहीं रहता है।
2. हनुमान चालीसा का पाठ करने से पहले मन को कैसे शुद्ध करें? हनुमान चालीसा का पाठ करने से पहले मन को पवित्र होना जरूरी है। अपने गुरु, माता-पिता और भगवान को याद करने से मन शांत हो जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने गुरु के चरण कमलों की धूल से मन रूपी दर्पण को निर्मल किया था।
3. बजरंगबली की कृपा से भक्त को कौन से प्रमुख लाभ मिलते हैं? बजरंगबली की कृपा से भक्तों को बल, बुद्धि और विद्या प्राप्त होती है। साथ ही, वे सारे पापों और कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं। वे खराब बुद्धि (कुमति) को दूर करके सद्बुद्धि (सुमति) भी प्रदान करते हैं।
4. हनुमान चालीसा के अनुसार हनुमान जी के सबसे बड़े पराक्रम क्या हैं? हनुमान चालीसा के अनुसार, हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाए। उन्होंने सूरज को मीठा फल समझकर निगल लिया था। साथ ही, उन्होंने राम की अंगूठी मुख में रखकर समुद्र को लांघा था।
5. क्या हनुमान चालीसा का पाठ मोक्ष की ओर ले जाता है? हां, हनुमान चालीसा का पाठ मोक्ष की ओर ले जाता है। आपके भजन करके ही भगवान राम को प्राप्त किया जा सकता है, और अंतकाल में भक्त रघुबर के पुर (वैकुंठ) जाते हैं। सौ बार पाठ करने से महा सुख (मोक्ष) की प्राप्ति होती है।