Britain Muslim Population: अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे ब्रिटिश नागरिक? लंदन में विरोध प्रदर्शन

ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है। क्या मूल ब्रिटिश नागरिक अल्पसंख्यक हो जाएंगे? लंदन में बड़े विरोध प्रदर्शनों की वजह जानिए और समझिए बदलती डेमोग्राफी का भविष्य।

Britain Muslim Population: अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे ब्रिटिश नागरिक? लंदन में विरोध प्रदर्शन
ब्रिटेन मुस्लिम आबादी: लंदन में विरोध प्रदर्शन और डेमोग्राफिक बदलाव

By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 17 Sep 2025

ब्रिटेन, वह देश जिसने कभी पूरी दुनिया पर हुकूमत की और जिसके साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था, आज एक नए खौफ के साये में जी रहा है। ब्रिटिश नागरिकों को यह डर सता रहा है कि उनकी पहचान, उनकी आजादी और उनका वजूद ही खतरे में है, और आने वाले दशकों में वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन सकते हैं। इस बढ़ती चिंता का गवाह बनी 13 सितंबर को राजधानी लंदन की सड़कें, जहां "यूनाइट द किंगडम" नाम से एक विशाल रैली निकाली गई। आयोजकों का दावा है कि इस विरोध प्रदर्शन में 10 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए, और वेस्टमिंस्टर ब्रिज तक लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। हर हाथ में ब्रिटेन का झंडा था और हर गली में एक ही आवाज गूंज रही थी: "हमें अपना वतन वापस चाहिए, अब प्रवासियों को वापस भेजो"। ब्रिटेन में ये हालात क्यों बने, इसके पीछे की मुख्य वजह है बदलती डेमोग्राफी यानी जनसंख्या का तेजी से बदलता संतुलन, खासकर मुस्लिम आबादी की अप्रत्याशित वृद्धि और अप्रवासियों की लगातार बढ़ती संख्या।

ब्रिटेन में क्यों हो रहा है Muslim Population को लेकर विरोध?

लंदन में 13 सितंबर को हुआ विरोध प्रदर्शन ब्रिटिश समाज में गहरे पैठे डर और चिंता का परिणाम था। "यूनाइट द किंगडम" रैली के आयोजकों ने दावा किया कि 10 लाख से अधिक लोगों ने इसमें भाग लिया, जो वेस्टमिंस्टर ब्रिज तक उमड़ पड़े थे। प्रदर्शनकारियों के हाथों में ब्रिटेन का झंडा था और उनकी मुख्य मांग थी "हमें अपना वतन वापस चाहिए" और "प्रवासियों को वापस भेजो"। यह विरोध प्रदर्शन केवल कुछ मुट्ठी भर लोगों का नहीं था, बल्कि यह ब्रिटिश मूल निवासियों के बीच पनप रहे इस डर को दर्शाता है कि वे अपने ही देश में अपनी पहचान, आजादी और वजूद खो सकते हैं। उन्हें लगने लगा है कि लगातार बढ़ती अप्रवासी आबादी और विशेष रूप से मुस्लिम जनसंख्या का बढ़ता अनुपात उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बदल रहा है, साथ ही उनके आर्थिक अवसरों पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। यह एक ऐसा संकट है जिसने ब्रिटेन के नागरिकों को हिला दिया है और उन्हें अपने भविष्य को लेकर चिंतित कर दिया है।

बदलती डेमोग्राफी: मुस्लिम जनसंख्या के आंकड़े क्या कहते हैं?

ब्रिटेन में बदलती डेमोग्राफी, खासकर मुस्लिम आबादी की तेजी से वृद्धि, इस पूरे विरोध प्रदर्शन और चिंता की जड़ में है। 2021 की जनगणना के अनुसार, अकेले लंदन में ही करीब 13 लाख मुसलमान रहते हैं, जो शहर की कुल आबादी का 15% हिस्सा है। इनमें से अधिकांश लोग भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए प्रवासी हैं। पूरे ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी लगभग 40 लाख तक पहुंच चुकी है, जो देश की कुल जनसंख्या का 6.5% है। अगर हम 25 साल पहले, यानी 2001 की बात करें, तो यह संख्या सिर्फ 16 लाख थी। इसका मतलब है कि सिर्फ दो दशकों में मुस्लिम आबादी दोगुनी हो गई है। अनुमान यह बताते हैं कि यदि यही रुझान जारी रहा, तो 2050 तक ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी 1 करोड़ 40 लाख तक पहुंच जाएगी, जो कुल जनसंख्या का 17% हिस्सा होगी। ये आंकड़े सीधे तौर पर मूल ब्रिटिश नागरिकों की चिंता को बढ़ाते हैं कि भविष्य में वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे।

प्रवासियों की बाढ़ और ब्रिटिश नागरिकों की चिंताएं

ब्रिटेन में प्रवासियों की बाढ़ लगातार जारी है, जिसने मूल ब्रिटिश नागरिकों की चिंताओं को और गहरा कर दिया है। 2022 में, ब्रिटेन में रिकॉर्ड 764,000 अप्रवासी पहुंचे। 2023 में यह संख्या 6,85,000 रही और पिछले साल करीब 4.5 लाख लोग ब्रिटेन में बसने पहुंचे। यहां तक कि इस साल भी जून तक 1 लाख से ज्यादा लोग शरण के लिए आवेदन कर चुके हैं। यह लगातार बढ़ती संख्या ब्रिटिश नागरिकों को भयभीत कर रही है कि प्रवासी न केवल उनके आर्थिक अवसर छीन रहे हैं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को भी तेजी से बदल रहे हैं। लंदन के कई इलाकों जैसे टॉवर हेमलेट्स, न्यूहम, रेडब्रिज और व्थम फॉरेस्ट में मुस्लिम आबादी 30% से भी अधिक हो चुकी है। इन क्षेत्रों में मस्जिदें, हलाल रेस्टोरेंट, बाजार और सांस्कृतिक कार्यक्रम अपनी अलग पहचान बनाते हैं, और कई जगहों पर तो स्थानीय काउंसलर भी मुस्लिम नेता ही चुने जा रहे हैं। यह स्थिति मूल निवासियों के बीच एक गहरी पहचान के संकट को जन्म दे रही है।

सांस्कृतिक और पहचान का संकट: क्या बदल रहा है ब्रिटेन?

ब्रिटेन के मूल निवासियों के बीच सांस्कृतिक और पहचान का संकट गहराता जा रहा है। उन्हें यह डर है कि आने वाले दशकों में वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे, और यह डर केवल अनुमानों पर आधारित नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार, अभी ब्रिटेन में 73% आबादी मूल ब्रिटिश है, लेकिन 2050 तक यह घटकर 57% रह जाएगी। 2063 तक यह संख्या आधे से भी कम हो जाएगी, जिसका अर्थ है कि मूल ब्रिटिश अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन जाएंगे। इसके बाद, 2075 तक इनकी आबादी कुल जनसंख्या का सिर्फ 44% बचेगी, और सदी के अंत तक यह आंकड़ा 33% तक सिमट जाएगा। यही वो आंकड़े हैं जो लोगों को गुलामी की तरफ लौटने का डर दिखा रहे हैं। ब्रिटेन के धीरे-धीरे अपने असली चरित्र को खोने की धारणा भी इस चिंता को बढ़ा रही है, क्योंकि ब्रिटिश समाज में विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं का बढ़ता प्रभाव दिख रहा है।

शरिया अदालतें और समाज में बढ़ता तनाव

ब्रिटेन में इस्लाम को लेकर फिक्र की एक और बड़ी वजह वहां 85 शरिया अदालतों का काम करना है। ये किसी भी पश्चिमी देश में सबसे ज्यादा हैं, और इनकी मौजूदगी कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि ब्रिटेन धीरे-धीरे अपने असली चरित्र और कानूनी ढांचे को खो रहा है। यह स्थिति समाज में तनाव को और बढ़ा रही है, जिसका प्रमाण मुस्लिम विरोधी नफरत के बढ़ते मामले हैं। 2024 में ऐसे 6300 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल की तुलना में 43% अधिक हैं। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि ब्रिटिश समाज में तनाव गहराता जा रहा है और विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास बढ़ रहा है। बढ़ती मुस्लिम आबादी और शरिया अदालतों की मौजूदगी को कुछ लोग पश्चिमी मूल्यों के लिए चुनौती मानते हैं, जिससे सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर टकराव की आशंका बढ़ जाती है।

आने वाले दशकों में क्या होगा ब्रिटेन का भविष्य?

ब्रिटेन का भविष्य एक चौराहे पर खड़ा दिख रहा है, जहां बदलती डेमोग्राफी और तेजी से बढ़ती Muslim Population ने वहां के नागरिकों को हिला दिया है। जिस देश ने कभी दुनिया को गुलाम बनाया था, क्या वह अब खुद को गुलामी के डर में जीता देखेगा? यह सवाल ब्रिटेन के मूल निवासियों के मन में गहराता जा रहा है। जनसांख्यिकीय अनुमानों के अनुसार, 2050 तक मूल ब्रिटिश आबादी 57% हो जाएगी और 2063 तक आधे से भी कम रह जाएगी, जिससे वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन जाएंगे। यह एक ऐसा भविष्य है जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। लंदन की सड़कों पर गूंज रहा "हमें अपना वतन वापस चाहिए" का नारा केवल एक विरोध प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह उस गहरे डर और पहचान के संकट का प्रतीक है जिससे ब्रिटेन जूझ रहा है। आने वाले दशकों में ब्रिटेन को अपनी सांस्कृतिक विरासत, आर्थिक स्थिरता और सामाजिक सामंजस्य को बनाए रखने के लिए इन गंभीर चुनौतियों का सामना करना होगा।

Conclusion

बदलती जनसंख्या और बढ़ती अप्रवासन दरों के कारण ब्रिटेन में अपने ही देश में अल्पसंख्यक बनने का डर मूल ब्रिटिश नागरिकों के बीच तेजी से फैल रहा है। लंदन में हुए विशाल प्रदर्शनों ने इस गहरी चिंता को सतह पर ला दिया है, जहां लोग "हमें अपना वतन वापस चाहिए" जैसे नारे लगा रहे हैं। मुस्लिम आबादी की दोगुनी वृद्धि और 2050 तक मूल ब्रिटिशों के अल्पसंख्यक बनने के अनुमानों ने इस बहस को और तेज कर दिया है। प्रवासियों की बाढ़, सांस्कृतिक पहचान का बदलता स्वरूप, शरिया अदालतों की बढ़ती संख्या और मुस्लिम विरोधी नफरत के बढ़ते मामले समाज में तनाव को बढ़ा रहे हैं। ब्रिटेन के सामने अब अपने भविष्य को लेकर एक बड़ी चुनौती है – उसे अपनी पहचान, सामाजिक सामंजस्य और मूल नागरिकों की चिंताओं के बीच संतुलन स्थापित करना होगा।

FAQs

1. ब्रिटेन में Muslim Population कितनी है? 2021 की जनगणना के अनुसार, पूरे ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी लगभग 40 लाख तक पहुंच चुकी है, जो कुल जनसंख्या का 6.5% है। 25 साल पहले, 2001 में यह संख्या सिर्फ 16 लाख थी, यानी दो दशकों में यह दोगुनी हो गई है। अनुमान है कि 2050 तक यह संख्या 1 करोड़ 40 लाख हो सकती है।

2. लंदन में Muslim Population का क्या हाल है? लंदन में मुस्लिम आबादी काफी अधिक है। 2021 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, सिर्फ लंदन में ही करीब 13 लाख मुसलमान रहते हैं, जो शहर की कुल आबादी का 15% हिस्सा है। लंदन के कुछ इलाकों जैसे टॉवर हेमलेट्स, न्यूहम, रेडब्रिज और व्थम फॉरेस्ट में तो मुस्लिम आबादी 30% से भी ज्यादा हो चुकी है।

3. ब्रिटेन में मूल ब्रिटिश नागरिक कब अल्पसंख्यक हो जाएंगे? एक रिपोर्ट के मुताबिक, अभी ब्रिटेन में 73% आबादी मूल ब्रिटिश है। लेकिन अनुमान है कि 2050 तक यह घटकर 57% रह जाएगी और 2063 तक आधे से भी कम हो जाएगी। इसका मतलब है कि 2063 तक मूल ब्रिटिश अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन जाएंगे।

4. ब्रिटेन में शरिया अदालतें क्यों चिंता का विषय हैं? ब्रिटेन में 85 शरिया अदालतें काम कर रही हैं, जो किसी भी पश्चिमी देश में सबसे ज्यादा हैं। कई लोग इसे चिंता का विषय मानते हैं क्योंकि उनका मानना है कि ब्रिटेन धीरे-धीरे अपने असली चरित्र और कानूनी सिद्धांतों को खो रहा है। यह समाज में तनाव और सांस्कृतिक टकराव को बढ़ा सकता है।

5. लंदन में हालिया विरोध प्रदर्शन का क्या कारण था? लंदन में 13 सितंबर को "यूनाइट द किंगडम" नाम से एक बड़ी रैली निकाली गई थी। इस विरोध प्रदर्शन का मुख्य कारण बढ़ती मुस्लिम आबादी और अप्रवासियों की संख्या को लेकर मूल ब्रिटिश नागरिकों का डर था। उन्हें यह डर है कि वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे और अपनी पहचान खो देंगे।

नीरज अहलावत | संस्थापक एवं मुख्य संपादक — Dainik Reality News Dainik Reality News में हम खबरों को केवल प्रकाशित नहीं करते, समझते हैं, विश्लेषित करते हैं, और तथ्यों की पुष्टि के बाद ही आपके सामने रखते हैं। हमारा विश्वास है कि पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं—एक ज़िम्मेदारी है। इसी विचारधारा के साथ नीरज अहलावत, Dainik Reality News के संस्थापक एवं मुख्य संपादक, वर्तमान डिजिटल पत्रकारिता जगत में एक प्रखर और विश्वसनीय नाम के रूप में स्थापित हुए हैं। पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया में 10+ वर्षों का गहन अनुभव रखते हुए उन्होंने राजनीति, अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और सामाजिक मुद्दों पर लगातार शोध-आधारित रिपोर्टिंग की है। उनके लेख वस्तुनिष्ठता, तथ्य-आधारित विश्लेषण और संतुलित दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। नी‍रज का मानना है कि "खबर सिर्फ़ लिखी नहीं जाती, उसकी आत्मा समझनी होती है।" इसी सोच ने Dainik Reality News को पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की राह पर आगे बढ़ाया। नीरज अहलावत न सिर्फ़ एक संपादक हैं, बल्कि Digital Strategy, SEO एवं Web Media Growth के विशेषज्ञ भी हैं। आधुनिक तकनीक, एल्गोरिथ्म और यूज़र व्यवहार की गहराई को समझते हुए वे न्यूज़ इकोसिस्टम को नए युग की पत्रकारिता के साथ जोड़ते हैं — ताकि ज़रूरी मुद्दे केवल लिखे ना जाएँ, लोगों तक पहुँचें भी। प्रमुख कार्यक्षेत्र एवं विशेषज्ञता ✔ राजनीतिक एवं आर्थिक विश्लेषण ✔ डिजिटल पत्रकारिता एवं रिपोर्टिंग ✔ मीडिया रणनीति, SEO और कंटेंट विस्तार ✔ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समसामयिक विषय ✔ तथ्यात्मक अनुसंधान एवं निष्पक्ष लेखन Articles by Author

Britain Muslim Population: अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे ब्रिटिश नागरिक? लंदन में विरोध प्रदर्शन

ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है। क्या मूल ब्रिटिश नागरिक अल्पसंख्यक हो जाएंगे? लंदन में बड़े विरोध प्रदर्शनों की वजह जानिए और समझिए बदलती डेमोग्राफी का भविष्य।

Britain Muslim Population: अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे ब्रिटिश नागरिक? लंदन में विरोध प्रदर्शन
ब्रिटेन मुस्लिम आबादी: लंदन में विरोध प्रदर्शन और डेमोग्राफिक बदलाव

By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 17 Sep 2025

ब्रिटेन, वह देश जिसने कभी पूरी दुनिया पर हुकूमत की और जिसके साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था, आज एक नए खौफ के साये में जी रहा है। ब्रिटिश नागरिकों को यह डर सता रहा है कि उनकी पहचान, उनकी आजादी और उनका वजूद ही खतरे में है, और आने वाले दशकों में वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन सकते हैं। इस बढ़ती चिंता का गवाह बनी 13 सितंबर को राजधानी लंदन की सड़कें, जहां "यूनाइट द किंगडम" नाम से एक विशाल रैली निकाली गई। आयोजकों का दावा है कि इस विरोध प्रदर्शन में 10 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए, और वेस्टमिंस्टर ब्रिज तक लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। हर हाथ में ब्रिटेन का झंडा था और हर गली में एक ही आवाज गूंज रही थी: "हमें अपना वतन वापस चाहिए, अब प्रवासियों को वापस भेजो"। ब्रिटेन में ये हालात क्यों बने, इसके पीछे की मुख्य वजह है बदलती डेमोग्राफी यानी जनसंख्या का तेजी से बदलता संतुलन, खासकर मुस्लिम आबादी की अप्रत्याशित वृद्धि और अप्रवासियों की लगातार बढ़ती संख्या।

ब्रिटेन में क्यों हो रहा है Muslim Population को लेकर विरोध?

लंदन में 13 सितंबर को हुआ विरोध प्रदर्शन ब्रिटिश समाज में गहरे पैठे डर और चिंता का परिणाम था। "यूनाइट द किंगडम" रैली के आयोजकों ने दावा किया कि 10 लाख से अधिक लोगों ने इसमें भाग लिया, जो वेस्टमिंस्टर ब्रिज तक उमड़ पड़े थे। प्रदर्शनकारियों के हाथों में ब्रिटेन का झंडा था और उनकी मुख्य मांग थी "हमें अपना वतन वापस चाहिए" और "प्रवासियों को वापस भेजो"। यह विरोध प्रदर्शन केवल कुछ मुट्ठी भर लोगों का नहीं था, बल्कि यह ब्रिटिश मूल निवासियों के बीच पनप रहे इस डर को दर्शाता है कि वे अपने ही देश में अपनी पहचान, आजादी और वजूद खो सकते हैं। उन्हें लगने लगा है कि लगातार बढ़ती अप्रवासी आबादी और विशेष रूप से मुस्लिम जनसंख्या का बढ़ता अनुपात उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बदल रहा है, साथ ही उनके आर्थिक अवसरों पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। यह एक ऐसा संकट है जिसने ब्रिटेन के नागरिकों को हिला दिया है और उन्हें अपने भविष्य को लेकर चिंतित कर दिया है।

बदलती डेमोग्राफी: मुस्लिम जनसंख्या के आंकड़े क्या कहते हैं?

ब्रिटेन में बदलती डेमोग्राफी, खासकर मुस्लिम आबादी की तेजी से वृद्धि, इस पूरे विरोध प्रदर्शन और चिंता की जड़ में है। 2021 की जनगणना के अनुसार, अकेले लंदन में ही करीब 13 लाख मुसलमान रहते हैं, जो शहर की कुल आबादी का 15% हिस्सा है। इनमें से अधिकांश लोग भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए प्रवासी हैं। पूरे ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी लगभग 40 लाख तक पहुंच चुकी है, जो देश की कुल जनसंख्या का 6.5% है। अगर हम 25 साल पहले, यानी 2001 की बात करें, तो यह संख्या सिर्फ 16 लाख थी। इसका मतलब है कि सिर्फ दो दशकों में मुस्लिम आबादी दोगुनी हो गई है। अनुमान यह बताते हैं कि यदि यही रुझान जारी रहा, तो 2050 तक ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी 1 करोड़ 40 लाख तक पहुंच जाएगी, जो कुल जनसंख्या का 17% हिस्सा होगी। ये आंकड़े सीधे तौर पर मूल ब्रिटिश नागरिकों की चिंता को बढ़ाते हैं कि भविष्य में वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे।

प्रवासियों की बाढ़ और ब्रिटिश नागरिकों की चिंताएं

ब्रिटेन में प्रवासियों की बाढ़ लगातार जारी है, जिसने मूल ब्रिटिश नागरिकों की चिंताओं को और गहरा कर दिया है। 2022 में, ब्रिटेन में रिकॉर्ड 764,000 अप्रवासी पहुंचे। 2023 में यह संख्या 6,85,000 रही और पिछले साल करीब 4.5 लाख लोग ब्रिटेन में बसने पहुंचे। यहां तक कि इस साल भी जून तक 1 लाख से ज्यादा लोग शरण के लिए आवेदन कर चुके हैं। यह लगातार बढ़ती संख्या ब्रिटिश नागरिकों को भयभीत कर रही है कि प्रवासी न केवल उनके आर्थिक अवसर छीन रहे हैं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को भी तेजी से बदल रहे हैं। लंदन के कई इलाकों जैसे टॉवर हेमलेट्स, न्यूहम, रेडब्रिज और व्थम फॉरेस्ट में मुस्लिम आबादी 30% से भी अधिक हो चुकी है। इन क्षेत्रों में मस्जिदें, हलाल रेस्टोरेंट, बाजार और सांस्कृतिक कार्यक्रम अपनी अलग पहचान बनाते हैं, और कई जगहों पर तो स्थानीय काउंसलर भी मुस्लिम नेता ही चुने जा रहे हैं। यह स्थिति मूल निवासियों के बीच एक गहरी पहचान के संकट को जन्म दे रही है।

सांस्कृतिक और पहचान का संकट: क्या बदल रहा है ब्रिटेन?

ब्रिटेन के मूल निवासियों के बीच सांस्कृतिक और पहचान का संकट गहराता जा रहा है। उन्हें यह डर है कि आने वाले दशकों में वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे, और यह डर केवल अनुमानों पर आधारित नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार, अभी ब्रिटेन में 73% आबादी मूल ब्रिटिश है, लेकिन 2050 तक यह घटकर 57% रह जाएगी। 2063 तक यह संख्या आधे से भी कम हो जाएगी, जिसका अर्थ है कि मूल ब्रिटिश अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन जाएंगे। इसके बाद, 2075 तक इनकी आबादी कुल जनसंख्या का सिर्फ 44% बचेगी, और सदी के अंत तक यह आंकड़ा 33% तक सिमट जाएगा। यही वो आंकड़े हैं जो लोगों को गुलामी की तरफ लौटने का डर दिखा रहे हैं। ब्रिटेन के धीरे-धीरे अपने असली चरित्र को खोने की धारणा भी इस चिंता को बढ़ा रही है, क्योंकि ब्रिटिश समाज में विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं का बढ़ता प्रभाव दिख रहा है।

शरिया अदालतें और समाज में बढ़ता तनाव

ब्रिटेन में इस्लाम को लेकर फिक्र की एक और बड़ी वजह वहां 85 शरिया अदालतों का काम करना है। ये किसी भी पश्चिमी देश में सबसे ज्यादा हैं, और इनकी मौजूदगी कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि ब्रिटेन धीरे-धीरे अपने असली चरित्र और कानूनी ढांचे को खो रहा है। यह स्थिति समाज में तनाव को और बढ़ा रही है, जिसका प्रमाण मुस्लिम विरोधी नफरत के बढ़ते मामले हैं। 2024 में ऐसे 6300 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल की तुलना में 43% अधिक हैं। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि ब्रिटिश समाज में तनाव गहराता जा रहा है और विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास बढ़ रहा है। बढ़ती मुस्लिम आबादी और शरिया अदालतों की मौजूदगी को कुछ लोग पश्चिमी मूल्यों के लिए चुनौती मानते हैं, जिससे सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर टकराव की आशंका बढ़ जाती है।

आने वाले दशकों में क्या होगा ब्रिटेन का भविष्य?

ब्रिटेन का भविष्य एक चौराहे पर खड़ा दिख रहा है, जहां बदलती डेमोग्राफी और तेजी से बढ़ती Muslim Population ने वहां के नागरिकों को हिला दिया है। जिस देश ने कभी दुनिया को गुलाम बनाया था, क्या वह अब खुद को गुलामी के डर में जीता देखेगा? यह सवाल ब्रिटेन के मूल निवासियों के मन में गहराता जा रहा है। जनसांख्यिकीय अनुमानों के अनुसार, 2050 तक मूल ब्रिटिश आबादी 57% हो जाएगी और 2063 तक आधे से भी कम रह जाएगी, जिससे वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन जाएंगे। यह एक ऐसा भविष्य है जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। लंदन की सड़कों पर गूंज रहा "हमें अपना वतन वापस चाहिए" का नारा केवल एक विरोध प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह उस गहरे डर और पहचान के संकट का प्रतीक है जिससे ब्रिटेन जूझ रहा है। आने वाले दशकों में ब्रिटेन को अपनी सांस्कृतिक विरासत, आर्थिक स्थिरता और सामाजिक सामंजस्य को बनाए रखने के लिए इन गंभीर चुनौतियों का सामना करना होगा।

Conclusion

बदलती जनसंख्या और बढ़ती अप्रवासन दरों के कारण ब्रिटेन में अपने ही देश में अल्पसंख्यक बनने का डर मूल ब्रिटिश नागरिकों के बीच तेजी से फैल रहा है। लंदन में हुए विशाल प्रदर्शनों ने इस गहरी चिंता को सतह पर ला दिया है, जहां लोग "हमें अपना वतन वापस चाहिए" जैसे नारे लगा रहे हैं। मुस्लिम आबादी की दोगुनी वृद्धि और 2050 तक मूल ब्रिटिशों के अल्पसंख्यक बनने के अनुमानों ने इस बहस को और तेज कर दिया है। प्रवासियों की बाढ़, सांस्कृतिक पहचान का बदलता स्वरूप, शरिया अदालतों की बढ़ती संख्या और मुस्लिम विरोधी नफरत के बढ़ते मामले समाज में तनाव को बढ़ा रहे हैं। ब्रिटेन के सामने अब अपने भविष्य को लेकर एक बड़ी चुनौती है – उसे अपनी पहचान, सामाजिक सामंजस्य और मूल नागरिकों की चिंताओं के बीच संतुलन स्थापित करना होगा।

FAQs

1. ब्रिटेन में Muslim Population कितनी है? 2021 की जनगणना के अनुसार, पूरे ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी लगभग 40 लाख तक पहुंच चुकी है, जो कुल जनसंख्या का 6.5% है। 25 साल पहले, 2001 में यह संख्या सिर्फ 16 लाख थी, यानी दो दशकों में यह दोगुनी हो गई है। अनुमान है कि 2050 तक यह संख्या 1 करोड़ 40 लाख हो सकती है।

2. लंदन में Muslim Population का क्या हाल है? लंदन में मुस्लिम आबादी काफी अधिक है। 2021 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, सिर्फ लंदन में ही करीब 13 लाख मुसलमान रहते हैं, जो शहर की कुल आबादी का 15% हिस्सा है। लंदन के कुछ इलाकों जैसे टॉवर हेमलेट्स, न्यूहम, रेडब्रिज और व्थम फॉरेस्ट में तो मुस्लिम आबादी 30% से भी ज्यादा हो चुकी है।

3. ब्रिटेन में मूल ब्रिटिश नागरिक कब अल्पसंख्यक हो जाएंगे? एक रिपोर्ट के मुताबिक, अभी ब्रिटेन में 73% आबादी मूल ब्रिटिश है। लेकिन अनुमान है कि 2050 तक यह घटकर 57% रह जाएगी और 2063 तक आधे से भी कम हो जाएगी। इसका मतलब है कि 2063 तक मूल ब्रिटिश अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन जाएंगे।

4. ब्रिटेन में शरिया अदालतें क्यों चिंता का विषय हैं? ब्रिटेन में 85 शरिया अदालतें काम कर रही हैं, जो किसी भी पश्चिमी देश में सबसे ज्यादा हैं। कई लोग इसे चिंता का विषय मानते हैं क्योंकि उनका मानना है कि ब्रिटेन धीरे-धीरे अपने असली चरित्र और कानूनी सिद्धांतों को खो रहा है। यह समाज में तनाव और सांस्कृतिक टकराव को बढ़ा सकता है।

5. लंदन में हालिया विरोध प्रदर्शन का क्या कारण था? लंदन में 13 सितंबर को "यूनाइट द किंगडम" नाम से एक बड़ी रैली निकाली गई थी। इस विरोध प्रदर्शन का मुख्य कारण बढ़ती मुस्लिम आबादी और अप्रवासियों की संख्या को लेकर मूल ब्रिटिश नागरिकों का डर था। उन्हें यह डर है कि वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे और अपनी पहचान खो देंगे।

नीरज अहलावत | संस्थापक एवं मुख्य संपादक — Dainik Reality News Dainik Reality News में हम खबरों को केवल प्रकाशित नहीं करते, समझते हैं, विश्लेषित करते हैं, और तथ्यों की पुष्टि के बाद ही आपके सामने रखते हैं। हमारा विश्वास है कि पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं—एक ज़िम्मेदारी है। इसी विचारधारा के साथ नीरज अहलावत, Dainik Reality News के संस्थापक एवं मुख्य संपादक, वर्तमान डिजिटल पत्रकारिता जगत में एक प्रखर और विश्वसनीय नाम के रूप में स्थापित हुए हैं। पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया में 10+ वर्षों का गहन अनुभव रखते हुए उन्होंने राजनीति, अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और सामाजिक मुद्दों पर लगातार शोध-आधारित रिपोर्टिंग की है। उनके लेख वस्तुनिष्ठता, तथ्य-आधारित विश्लेषण और संतुलित दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। नी‍रज का मानना है कि "खबर सिर्फ़ लिखी नहीं जाती, उसकी आत्मा समझनी होती है।" इसी सोच ने Dainik Reality News को पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की राह पर आगे बढ़ाया। नीरज अहलावत न सिर्फ़ एक संपादक हैं, बल्कि Digital Strategy, SEO एवं Web Media Growth के विशेषज्ञ भी हैं। आधुनिक तकनीक, एल्गोरिथ्म और यूज़र व्यवहार की गहराई को समझते हुए वे न्यूज़ इकोसिस्टम को नए युग की पत्रकारिता के साथ जोड़ते हैं — ताकि ज़रूरी मुद्दे केवल लिखे ना जाएँ, लोगों तक पहुँचें भी। प्रमुख कार्यक्षेत्र एवं विशेषज्ञता ✔ राजनीतिक एवं आर्थिक विश्लेषण ✔ डिजिटल पत्रकारिता एवं रिपोर्टिंग ✔ मीडिया रणनीति, SEO और कंटेंट विस्तार ✔ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समसामयिक विषय ✔ तथ्यात्मक अनुसंधान एवं निष्पक्ष लेखन Articles by Author
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