Spirituality ही है परम शांति का मार्ग: महाराज जी ने बताया आध्यात्मिक जीवन का महत्व और नाम जप का रहस्य

आध्यात्मिक जीवन ही चिंता, शोक और भय से मुक्ति दिलाता है। जानिए श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज से अध्यात्म और नाम जप की शक्ति, जो आपके जीवन को पवित्र बना देगी।

Spirituality ही है परम शांति का मार्ग: महाराज जी ने बताया आध्यात्मिक जीवन का महत्व और नाम जप का रहस्य
आध्यात्मिक जीवन का महत्व और नाम जप की शक्ति

 दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 13 Oct 2025

जीवन की भाग-दौड़ और भौतिक सुखों के बीच यदि आप परम शांति और विश्राम की तलाश कर रहे हैं, तो यह समाचार आपके लिए है। श्री वृंदावन धाम के पूज्य संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने हाल ही में एक एकांतिक वार्तालाप के दौरान विश्व को यह महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि अध्यात्म के बिना जीवन शून्य है। महाराज जी ने स्पष्ट किया कि भौतिक उन्नति—चाहे वह रुपया, मकान, पुत्र या पत्नी हो—शरीर छूटने पर स्वप्निक हो जाती है। ऐसे में, व्यक्ति को चिंता, शोक और नाना प्रकार के विषाद पर विजय पाने के लिए हर हाल में Spirituality यानी अध्यात्म से जुड़ना चाहिए। यह आध्यात्मिक ज्ञान ही है जो हमारे जीवन को पवित्र, उज्जवल और समाज सेवी बनाता है; अन्यथा, अध्यात्म के बिना जीवन कूड़ा है। गुरुदेव ने न केवल अध्यात्म की अनिवार्यता बताई, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि सच्चा अध्यात्म क्या है और इसे अपने जीवन में कैसे उतारा जाए, ताकि आप इसी जन्म में मोक्ष प्राप्ति के अधिकारी बन सकें।

जीवन में अध्यात्म क्यों है अनिवार्य?

पूज्य गुरुदेव भगवान श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने स्पष्ट किया कि अध्यात्म ही परम शांति, परम विश्राम, निश्चिंतता और निशोकता का एकमात्र स्थान है। उनके अनुसार, बिना अध्यात्म के जीवन मृत है, वासना में है, व्यसन में है, और व्यर्थ की चिंता (ओवरथिंकिंग) में डूबा हुआ है। आज हम जिस आधुनिकता में जी रहे हैं, वह हमारे जीवन को नियंत्रित नहीं कर पाती, जबकि अध्यात्म हमारी आधुनिकता को नियंत्रण में रखते हुए हमारे जीवन को पवित्र और उज्जवल बनाता है। महाराज जी ने इस सत्य को स्थापित करते हुए कहा कि भौतिक उन्नति, जैसे रुपया, मकान, पुत्र, पत्नी, ये सभी लौकिक चीजें शरीर छूटने पर स्वप्निक हो जाती हैं, इनका कोई महत्व नहीं रहता। इसके बाद व्यक्ति कर्मों के अनुसार फिर नए जन्म और मृत्यु के व्यर्थ के चक्र में फँस जाता है, इसीलिए इस चक्र से मुक्ति के लिए अध्यात्म अनिवार्य है। शुद्ध अध्यात्म का अर्थ है आत्म स्वरूप का चिंतन करना। आत्म स्वरूप के चिंतन के लिए कुछ नियम लागू होते हैं, जिनमें संयम, आहार की शुद्धि, विचारों की शुद्धि, ब्रह्मचर्य और संसार से व्यवहार में सुधार शामिल हैं। लेकिन यह निर्णय कौन करे कि हम सही चल रहे हैं या नहीं? महाराज जी बताते हैं कि कार्य और अकार्य की व्यवस्था शास्त्र में है, और हमें शास्त्र ज्ञान न होने के कारण संत महापुरुषों का सत्संग करना चाहिए, जिससे पता चलता है कि हम ठीक मार्ग पर हैं या नहीं। उन्होंने यह उदाहरण दिया कि मरीज के 'ठीक' कहने से कुछ नहीं होता, डॉक्टर प्रमाणित करे, तभी बात मानी जाती है। इसी प्रकार, शास्त्र और संत जब हमारे जीवन को प्रमाणित करते हैं, तभी हम सही मार्ग पर होते हैं।

गुरु कृपा: भगवत प्राप्ति का मूल मंत्र

महाराज जी ने भगवत प्राप्ति के मार्ग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि न तो ज्ञान मार्ग से और न ही भक्ति मार्ग से भगवत प्राप्ति सिद्ध हो सकती है। भगवत प्राप्ति का मूल केवल गुरु कृपा है। मोक्ष मूलम गुरु कृपा। उन्होंने स्पष्ट किया कि भक्ति, ज्ञान और वैराग्य सब एक ही ताना-बाना है। जब हम भगवान का भजन करते हैं, तो उसे भक्ति कहते हैं, और भजन से जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे ज्ञान कहते हैं; भजन से संसार से राग नष्ट होता है, उसे वैराग्य कहते हैं। इन सबमें मूल गुरु कृपा है, हमारा अपना कोई पुरुषार्थ नहीं। गुरुदेव ने यह भी बताया कि शिष्य को गुरु की आज्ञा का पालन करना ही उनकी प्रसन्नता का हेतु है। यदि शिष्य मनमानी आचरण करता है, तो गुरु मुस्कुरा भी दें, तो उसे प्रसन्नता नहीं माना जाता। गुरु की प्रसन्नता तब होती है जब जीव अपने स्वरूप की तरफ बढ़ता है या भगवान की आराधना की तरफ बढ़ता है। जो निरंतर भजन करता है और भजन में उन्नति करता है, तभी गुरुदेव प्रसन्न होते हैं। गुरु आज्ञा पर रहने से ही अध्यात्म पुष्ट होता रहता है।

संशयों और चिंताओं से मुक्ति कैसे पाएं?

एक भक्त ने महाराज जी से प्रश्न किया कि भक्त अपने मन के हर प्रश्न और संशयों का त्याग कैसे करें। महाराज जी ने संशय रहित होने का मार्ग बताते हुए कहा कि भक्त के अंदर संशय रह ही नहीं सकता, क्योंकि भक्त शब्द बहुत गरिमामय है और महिमामय है। भक्त वही है जो निरंतर भगवान के स्मरण में डूबा हुआ है। जो नवीन भक्त भक्ति मार्ग पर अग्रसर हुए हैं और जिनके अंदर संशय उठते हैं, उनके लिए दो जगह से समाधान होता है:

  1. शास्त्रों का स्वाध्याय: हमें वेद, पुराण, स्मृति आदि का स्वाध्याय करना चाहिए।
  2. महापुरुषों का संग: हमें ऐसे महापुरुषों का संग करना चाहिए जो काम, क्रोध, मोह पर विजय प्राप्त कर चुके हैं और निरंतर भगवान में डूबे हुए हैं।

महाराज जी ने कहा कि साधु संग से ही विवेक जागृत होता है—बिन सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिन सुलभ न सोई। विवेक के प्रादुर्भाव से ही संशयों का नाश होता है और समस्त चिंताएं तथा शोक का नाश हो जाता है। संत समागम के लिए शर्त यह है कि संत को शब्द ब्रह्म का ज्ञान हो और परम ब्रह्म की अनुभूति भी हो। जब बहुत काल तक संतों का सत्संग किया जाता है, तभी सब संशयों का नाश हो जाता है और भगवान में प्रीति हो जाती है।

भक्ति में अहंकार और दिखावे का दोष

आजकल सोशल मीडिया के युग में भक्ति में दिखावा (पाखंड) एक भयानक दोष के रूप में उभर रहा है। महाराज जी ने इस पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यदि हम ठाकुर जी की सेवा उनके सुख के लिए न करके लोगों को आकर्षित करने के लिए करते हैं, तो यह पाखंड है और यह भक्ति को नष्ट कर देगा। दिखावा बहुत हानिकारक होता है, क्योंकि यह भक्त को सम्मान, धन या वाहवाही जैसी सांसारिक वासनाओं की पूर्ति की ओर ले जाता है। महाराज जी ने स्पष्ट किया कि ठाकुर जी का भोग, स्नान या श्रृंगार सोशल मीडिया पर डालना, जहां हजारों कमेंट आते हों, यह ठीक नहीं है। उन्होंने प्रश्न किया, जैसे हम अपने बच्चे को भोजन कराते हुए वीडियो नहीं बनाते, तो गोपाल जी को भोग लगाते हुए वीडियो डालने की क्या बात है? यह तो छिपाने की बात है, छपाने की नहीं। यदि किसी को भक्ति का अहंकार हो जाता है कि 'मैं श्रेष्ठ हूँ', तो भक्ति ही चली गई। भक्ति तो तृणादपि सुनीचेन तरोरिव सहिष्णुना का अनुभव कराती है—अर्थात अपने को सबसे अधम और तुच्छ अनुभव कराती है। धन, विद्या, रूप, कुल और यौवन आदि का अहंकार भक्ति रहित कर देता है। उन्होंने कठोर शब्दों में कहा कि जो इस प्रकार विषयों के हाथ बिक जाते हैं, वे हरि को रिझा नहीं सकते। ठाकुर जी का भोग और स्नान पर्दे में किया जाता है, ताकि कोई देख न पाए, क्योंकि जितना गुप्त भजन साधना की जाती है, वह उतना ही प्रकाशित होती है।

नाम जप: हर समस्या का अचूक समाधान

नाम जप की महिमा बताते हुए महाराज जी ने कहा कि हमें अपनी जिभ्या से निरंतर नाम रटना चाहिए, जिससे ज्ञान अग्नि प्रकट हो जाएगी। जब ज्ञान अग्नि प्रकट होती है, तो विषयों के प्रति मन का जाना, भोगों में सुख बुद्धि होना, संसार में महत्व बुद्धि होना—ये सारे विक्षेप (मल और आवरण) भस्म हो जाते हैं। जहां यह नष्ट हुआ, वहां अखंड भजन (अव्यावत भजनात) एक तैल धारावत चलता रहता है। उन्होंने जोर देकर कहा, "विश्वास करो, अन्य साधन बने तो करो, नहीं तो नाम जप करो"। नाम जप से हृदय में परमानंद की धारा बह जाती है और लौकिक तथा पारलौकिक सब सुखों का अधिकार प्राप्त हो जाता है, क्योंकि पाप नष्ट होते ही सब सुखों का प्रादुर्भाव हो जाता है।

प्रारंभिक अवस्था में नाम जप से हृदय में जलन (ताप/कष्ट) पैदा होती है, जिसे सहना अनिवार्य है। महाराज जी ने पाप रूपी फोड़े का उदाहरण देते हुए समझाया कि नाम संकीर्तनम यस सर्व पाप प्रणाशनम (भगवान का नाम संकीर्तन सभी पापों को नष्ट करता है)। पाप नष्ट होने पर हृदय जलता है, और इस ताप को सहना ही भगवत मार्ग का प्रतीक है। जो इस ताप को सहन कर जाता है, वह अमृत पद का अधिकारी हो जाता है। नाम जप हर अवस्था में किया जा सकता है। अपवित्र हो या पवित्र, किसी भी स्थान पर नाम जप किया जा सकता है। नाम पाहरू दिवस निश (नाम दिन रात पहरा देता है)। यदि हम खूब नाम जप करें, तो इसी जन्म में मोक्ष मिल सकता है। उन्होंने सलाह दी कि कुछ संख्या गुरु मंत्र की रखनी चाहिए (जैसे 11 माला) और शेष समय भगवान का नाम जप करना चाहिए।

चरित्र की महत्ता: सबसे बड़ी संपत्ति

चरित्र को महाराज जी ने सबसे बड़ी संपत्ति बताया। काशी के एक सिद्ध महापुरुष का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे देश में उसी की पूजा होती है, जिसका चरित्र अच्छा होता है। रावण विद्वान था, बलवान था, उत्तम कुल का था, लेकिन वह चरित्रहीन था, इसलिए उसे राक्षस कहा गया। हमारे यहां राम (मर्यादा पुरुषोत्तम) के चरित्र की पूजा होती है, जो चरित्रवान थे।

  • Money is loss, nothing is loss.
  • Health is loss, something is loss.
  • But if Character is loss, everything is loss. (चरित्र इज लॉस तो एवरीथिंग इज लॉस)

यदि हमारा चरित्र पवित्र हो और हम नाम जप करें, तो हमें स्थाई ज्ञान प्राप्त होता है। चरित्रवान ही भक्त हो सकता है और चरित्रवान ही समाज का सुधारक हो सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि हम सत्संग सुनकर बाहर जाते ही गंदी बातें सोचते हैं या गंदे आचरण करते हैं, तो वह सब पोछा लग जाता है, इसलिए चरित्र को संभालना अत्यंत आवश्यक है।

Conclusion (1 para): Summary + Future Possibility

पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन का सार यह है कि एक अर्थपूर्ण जीवन के लिए Spirituality (अध्यात्म) अनिवार्य है, क्योंकि भौतिक उपलब्धियां क्षणभंगुर हैं। परम शांति की प्राप्ति केवल गुरु कृपा और शास्त्रों द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर संभव है। हमें निरंतर नाम जप करते हुए, अपने चरित्र की पवित्रता बनाए रखनी चाहिए, और अहंकार या दिखावे (पाखंड) को भक्ति से दूर रखना चाहिए। यदि भक्त इस मार्ग पर दृढ़ता से चलते हैं और नाम जप से आने वाले ताप को सहन करते हैं, तो वे इसी जन्म में मोक्ष (भगवत प्राप्ति) प्राप्त कर सकते हैं। महाराज जी ने यह भी कहा कि राष्ट्र सेवा सबसे श्रेष्ठ है, और आंतरिक शत्रुओं (काम, क्रोध आदि) पर विजय प्राप्त करना राष्ट्र को स्वतंत्र और समृद्ध बनाने के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना बाहरी शत्रुओं से लड़ना।

FAQs (5 Q&A):

  1. Spirituality के बिना जीवन कैसा है? महाराज जी के अनुसार, अध्यात्म के बिना जीवन शून्य, मृत, वासना में, व्यसन में और व्यर्थ चिंता (ओवरथिंकिंग) में डूबा हुआ होता है। रुपया, मकान, पुत्र जैसी लौकिक उन्नति शरीर छूटने पर स्वप्निक हो जाती है, इसलिए अध्यात्म अनिवार्य है।

  2. भगवत प्राप्ति का मूल आधार क्या है? भगवत प्राप्ति का मूल आधार न तो ज्ञान मार्ग है और न ही भक्ति मार्ग, बल्कि केवल गुरु कृपा है। गुरु कृपा होने पर ही भजन से भक्ति, ज्ञान और वैराग्य सब एक साथ प्राप्त होते हैं।

  3. नाम जप करने पर हृदय में जलन क्यों होती है? प्रारंभिक अवस्था में नाम जप से हृदय में जलन (ताप) इसलिए पैदा होती है क्योंकि नाम जप हमारे अंदर के पाप रूपी फोड़े का ऑपरेशन करता है। यह ताप पाप के नष्ट होने का प्रतीक है, जिसे सहन करने पर ही हृदय आनंद से नाच उठता है।

  4. संशय और चिंता से मुक्ति पाने के लिए क्या करें? संशय और चिंता से मुक्ति पाने के लिए शास्त्रों का स्वाध्याय और काम-क्रोधादि पर विजय प्राप्त कर चुके महापुरुषों का संग करना चाहिए। साधु संग से ही विवेक जागृत होता है, जिससे सभी संशयों का नाश हो जाता है।

  5. भक्ति मार्ग में दिखावा (पाखंड) क्यों हानिकारक है? दिखावा या पाखंड भक्ति को नष्ट कर देता है क्योंकि इसका उद्देश्य भगवान को रिझाना नहीं, बल्कि संसार से सम्मान या वाहवाही प्राप्त करके अपनी वासनाओं की पूर्ति करना होता है। गुप्त भजन साधना ही सही फल प्रदान करती है।

नीरज अहलावत | संस्थापक एवं मुख्य संपादक — Dainik Reality News Dainik Reality News में हम खबरों को केवल प्रकाशित नहीं करते, समझते हैं, विश्लेषित करते हैं, और तथ्यों की पुष्टि के बाद ही आपके सामने रखते हैं। हमारा विश्वास है कि पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं—एक ज़िम्मेदारी है। इसी विचारधारा के साथ नीरज अहलावत, Dainik Reality News के संस्थापक एवं मुख्य संपादक, वर्तमान डिजिटल पत्रकारिता जगत में एक प्रखर और विश्वसनीय नाम के रूप में स्थापित हुए हैं। पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया में 10+ वर्षों का गहन अनुभव रखते हुए उन्होंने राजनीति, अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और सामाजिक मुद्दों पर लगातार शोध-आधारित रिपोर्टिंग की है। उनके लेख वस्तुनिष्ठता, तथ्य-आधारित विश्लेषण और संतुलित दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। नी‍रज का मानना है कि "खबर सिर्फ़ लिखी नहीं जाती, उसकी आत्मा समझनी होती है।" इसी सोच ने Dainik Reality News को पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की राह पर आगे बढ़ाया। नीरज अहलावत न सिर्फ़ एक संपादक हैं, बल्कि Digital Strategy, SEO एवं Web Media Growth के विशेषज्ञ भी हैं। आधुनिक तकनीक, एल्गोरिथ्म और यूज़र व्यवहार की गहराई को समझते हुए वे न्यूज़ इकोसिस्टम को नए युग की पत्रकारिता के साथ जोड़ते हैं — ताकि ज़रूरी मुद्दे केवल लिखे ना जाएँ, लोगों तक पहुँचें भी। प्रमुख कार्यक्षेत्र एवं विशेषज्ञता ✔ राजनीतिक एवं आर्थिक विश्लेषण ✔ डिजिटल पत्रकारिता एवं रिपोर्टिंग ✔ मीडिया रणनीति, SEO और कंटेंट विस्तार ✔ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समसामयिक विषय ✔ तथ्यात्मक अनुसंधान एवं निष्पक्ष लेखन Articles by Author

Spirituality ही है परम शांति का मार्ग: महाराज जी ने बताया आध्यात्मिक जीवन का महत्व और नाम जप का रहस्य

आध्यात्मिक जीवन ही चिंता, शोक और भय से मुक्ति दिलाता है। जानिए श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज से अध्यात्म और नाम जप की शक्ति, जो आपके जीवन को पवित्र बना देगी।

Spirituality ही है परम शांति का मार्ग: महाराज जी ने बताया आध्यात्मिक जीवन का महत्व और नाम जप का रहस्य
आध्यात्मिक जीवन का महत्व और नाम जप की शक्ति

 दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 13 Oct 2025

जीवन की भाग-दौड़ और भौतिक सुखों के बीच यदि आप परम शांति और विश्राम की तलाश कर रहे हैं, तो यह समाचार आपके लिए है। श्री वृंदावन धाम के पूज्य संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने हाल ही में एक एकांतिक वार्तालाप के दौरान विश्व को यह महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि अध्यात्म के बिना जीवन शून्य है। महाराज जी ने स्पष्ट किया कि भौतिक उन्नति—चाहे वह रुपया, मकान, पुत्र या पत्नी हो—शरीर छूटने पर स्वप्निक हो जाती है। ऐसे में, व्यक्ति को चिंता, शोक और नाना प्रकार के विषाद पर विजय पाने के लिए हर हाल में Spirituality यानी अध्यात्म से जुड़ना चाहिए। यह आध्यात्मिक ज्ञान ही है जो हमारे जीवन को पवित्र, उज्जवल और समाज सेवी बनाता है; अन्यथा, अध्यात्म के बिना जीवन कूड़ा है। गुरुदेव ने न केवल अध्यात्म की अनिवार्यता बताई, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि सच्चा अध्यात्म क्या है और इसे अपने जीवन में कैसे उतारा जाए, ताकि आप इसी जन्म में मोक्ष प्राप्ति के अधिकारी बन सकें।

जीवन में अध्यात्म क्यों है अनिवार्य?

पूज्य गुरुदेव भगवान श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने स्पष्ट किया कि अध्यात्म ही परम शांति, परम विश्राम, निश्चिंतता और निशोकता का एकमात्र स्थान है। उनके अनुसार, बिना अध्यात्म के जीवन मृत है, वासना में है, व्यसन में है, और व्यर्थ की चिंता (ओवरथिंकिंग) में डूबा हुआ है। आज हम जिस आधुनिकता में जी रहे हैं, वह हमारे जीवन को नियंत्रित नहीं कर पाती, जबकि अध्यात्म हमारी आधुनिकता को नियंत्रण में रखते हुए हमारे जीवन को पवित्र और उज्जवल बनाता है। महाराज जी ने इस सत्य को स्थापित करते हुए कहा कि भौतिक उन्नति, जैसे रुपया, मकान, पुत्र, पत्नी, ये सभी लौकिक चीजें शरीर छूटने पर स्वप्निक हो जाती हैं, इनका कोई महत्व नहीं रहता। इसके बाद व्यक्ति कर्मों के अनुसार फिर नए जन्म और मृत्यु के व्यर्थ के चक्र में फँस जाता है, इसीलिए इस चक्र से मुक्ति के लिए अध्यात्म अनिवार्य है। शुद्ध अध्यात्म का अर्थ है आत्म स्वरूप का चिंतन करना। आत्म स्वरूप के चिंतन के लिए कुछ नियम लागू होते हैं, जिनमें संयम, आहार की शुद्धि, विचारों की शुद्धि, ब्रह्मचर्य और संसार से व्यवहार में सुधार शामिल हैं। लेकिन यह निर्णय कौन करे कि हम सही चल रहे हैं या नहीं? महाराज जी बताते हैं कि कार्य और अकार्य की व्यवस्था शास्त्र में है, और हमें शास्त्र ज्ञान न होने के कारण संत महापुरुषों का सत्संग करना चाहिए, जिससे पता चलता है कि हम ठीक मार्ग पर हैं या नहीं। उन्होंने यह उदाहरण दिया कि मरीज के 'ठीक' कहने से कुछ नहीं होता, डॉक्टर प्रमाणित करे, तभी बात मानी जाती है। इसी प्रकार, शास्त्र और संत जब हमारे जीवन को प्रमाणित करते हैं, तभी हम सही मार्ग पर होते हैं।

गुरु कृपा: भगवत प्राप्ति का मूल मंत्र

महाराज जी ने भगवत प्राप्ति के मार्ग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि न तो ज्ञान मार्ग से और न ही भक्ति मार्ग से भगवत प्राप्ति सिद्ध हो सकती है। भगवत प्राप्ति का मूल केवल गुरु कृपा है। मोक्ष मूलम गुरु कृपा। उन्होंने स्पष्ट किया कि भक्ति, ज्ञान और वैराग्य सब एक ही ताना-बाना है। जब हम भगवान का भजन करते हैं, तो उसे भक्ति कहते हैं, और भजन से जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे ज्ञान कहते हैं; भजन से संसार से राग नष्ट होता है, उसे वैराग्य कहते हैं। इन सबमें मूल गुरु कृपा है, हमारा अपना कोई पुरुषार्थ नहीं। गुरुदेव ने यह भी बताया कि शिष्य को गुरु की आज्ञा का पालन करना ही उनकी प्रसन्नता का हेतु है। यदि शिष्य मनमानी आचरण करता है, तो गुरु मुस्कुरा भी दें, तो उसे प्रसन्नता नहीं माना जाता। गुरु की प्रसन्नता तब होती है जब जीव अपने स्वरूप की तरफ बढ़ता है या भगवान की आराधना की तरफ बढ़ता है। जो निरंतर भजन करता है और भजन में उन्नति करता है, तभी गुरुदेव प्रसन्न होते हैं। गुरु आज्ञा पर रहने से ही अध्यात्म पुष्ट होता रहता है।

संशयों और चिंताओं से मुक्ति कैसे पाएं?

एक भक्त ने महाराज जी से प्रश्न किया कि भक्त अपने मन के हर प्रश्न और संशयों का त्याग कैसे करें। महाराज जी ने संशय रहित होने का मार्ग बताते हुए कहा कि भक्त के अंदर संशय रह ही नहीं सकता, क्योंकि भक्त शब्द बहुत गरिमामय है और महिमामय है। भक्त वही है जो निरंतर भगवान के स्मरण में डूबा हुआ है। जो नवीन भक्त भक्ति मार्ग पर अग्रसर हुए हैं और जिनके अंदर संशय उठते हैं, उनके लिए दो जगह से समाधान होता है:

  1. शास्त्रों का स्वाध्याय: हमें वेद, पुराण, स्मृति आदि का स्वाध्याय करना चाहिए।
  2. महापुरुषों का संग: हमें ऐसे महापुरुषों का संग करना चाहिए जो काम, क्रोध, मोह पर विजय प्राप्त कर चुके हैं और निरंतर भगवान में डूबे हुए हैं।

महाराज जी ने कहा कि साधु संग से ही विवेक जागृत होता है—बिन सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिन सुलभ न सोई। विवेक के प्रादुर्भाव से ही संशयों का नाश होता है और समस्त चिंताएं तथा शोक का नाश हो जाता है। संत समागम के लिए शर्त यह है कि संत को शब्द ब्रह्म का ज्ञान हो और परम ब्रह्म की अनुभूति भी हो। जब बहुत काल तक संतों का सत्संग किया जाता है, तभी सब संशयों का नाश हो जाता है और भगवान में प्रीति हो जाती है।

भक्ति में अहंकार और दिखावे का दोष

आजकल सोशल मीडिया के युग में भक्ति में दिखावा (पाखंड) एक भयानक दोष के रूप में उभर रहा है। महाराज जी ने इस पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यदि हम ठाकुर जी की सेवा उनके सुख के लिए न करके लोगों को आकर्षित करने के लिए करते हैं, तो यह पाखंड है और यह भक्ति को नष्ट कर देगा। दिखावा बहुत हानिकारक होता है, क्योंकि यह भक्त को सम्मान, धन या वाहवाही जैसी सांसारिक वासनाओं की पूर्ति की ओर ले जाता है। महाराज जी ने स्पष्ट किया कि ठाकुर जी का भोग, स्नान या श्रृंगार सोशल मीडिया पर डालना, जहां हजारों कमेंट आते हों, यह ठीक नहीं है। उन्होंने प्रश्न किया, जैसे हम अपने बच्चे को भोजन कराते हुए वीडियो नहीं बनाते, तो गोपाल जी को भोग लगाते हुए वीडियो डालने की क्या बात है? यह तो छिपाने की बात है, छपाने की नहीं। यदि किसी को भक्ति का अहंकार हो जाता है कि 'मैं श्रेष्ठ हूँ', तो भक्ति ही चली गई। भक्ति तो तृणादपि सुनीचेन तरोरिव सहिष्णुना का अनुभव कराती है—अर्थात अपने को सबसे अधम और तुच्छ अनुभव कराती है। धन, विद्या, रूप, कुल और यौवन आदि का अहंकार भक्ति रहित कर देता है। उन्होंने कठोर शब्दों में कहा कि जो इस प्रकार विषयों के हाथ बिक जाते हैं, वे हरि को रिझा नहीं सकते। ठाकुर जी का भोग और स्नान पर्दे में किया जाता है, ताकि कोई देख न पाए, क्योंकि जितना गुप्त भजन साधना की जाती है, वह उतना ही प्रकाशित होती है।

नाम जप: हर समस्या का अचूक समाधान

नाम जप की महिमा बताते हुए महाराज जी ने कहा कि हमें अपनी जिभ्या से निरंतर नाम रटना चाहिए, जिससे ज्ञान अग्नि प्रकट हो जाएगी। जब ज्ञान अग्नि प्रकट होती है, तो विषयों के प्रति मन का जाना, भोगों में सुख बुद्धि होना, संसार में महत्व बुद्धि होना—ये सारे विक्षेप (मल और आवरण) भस्म हो जाते हैं। जहां यह नष्ट हुआ, वहां अखंड भजन (अव्यावत भजनात) एक तैल धारावत चलता रहता है। उन्होंने जोर देकर कहा, "विश्वास करो, अन्य साधन बने तो करो, नहीं तो नाम जप करो"। नाम जप से हृदय में परमानंद की धारा बह जाती है और लौकिक तथा पारलौकिक सब सुखों का अधिकार प्राप्त हो जाता है, क्योंकि पाप नष्ट होते ही सब सुखों का प्रादुर्भाव हो जाता है।

प्रारंभिक अवस्था में नाम जप से हृदय में जलन (ताप/कष्ट) पैदा होती है, जिसे सहना अनिवार्य है। महाराज जी ने पाप रूपी फोड़े का उदाहरण देते हुए समझाया कि नाम संकीर्तनम यस सर्व पाप प्रणाशनम (भगवान का नाम संकीर्तन सभी पापों को नष्ट करता है)। पाप नष्ट होने पर हृदय जलता है, और इस ताप को सहना ही भगवत मार्ग का प्रतीक है। जो इस ताप को सहन कर जाता है, वह अमृत पद का अधिकारी हो जाता है। नाम जप हर अवस्था में किया जा सकता है। अपवित्र हो या पवित्र, किसी भी स्थान पर नाम जप किया जा सकता है। नाम पाहरू दिवस निश (नाम दिन रात पहरा देता है)। यदि हम खूब नाम जप करें, तो इसी जन्म में मोक्ष मिल सकता है। उन्होंने सलाह दी कि कुछ संख्या गुरु मंत्र की रखनी चाहिए (जैसे 11 माला) और शेष समय भगवान का नाम जप करना चाहिए।

चरित्र की महत्ता: सबसे बड़ी संपत्ति

चरित्र को महाराज जी ने सबसे बड़ी संपत्ति बताया। काशी के एक सिद्ध महापुरुष का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे देश में उसी की पूजा होती है, जिसका चरित्र अच्छा होता है। रावण विद्वान था, बलवान था, उत्तम कुल का था, लेकिन वह चरित्रहीन था, इसलिए उसे राक्षस कहा गया। हमारे यहां राम (मर्यादा पुरुषोत्तम) के चरित्र की पूजा होती है, जो चरित्रवान थे।

  • Money is loss, nothing is loss.
  • Health is loss, something is loss.
  • But if Character is loss, everything is loss. (चरित्र इज लॉस तो एवरीथिंग इज लॉस)

यदि हमारा चरित्र पवित्र हो और हम नाम जप करें, तो हमें स्थाई ज्ञान प्राप्त होता है। चरित्रवान ही भक्त हो सकता है और चरित्रवान ही समाज का सुधारक हो सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि हम सत्संग सुनकर बाहर जाते ही गंदी बातें सोचते हैं या गंदे आचरण करते हैं, तो वह सब पोछा लग जाता है, इसलिए चरित्र को संभालना अत्यंत आवश्यक है।

Conclusion (1 para): Summary + Future Possibility

पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन का सार यह है कि एक अर्थपूर्ण जीवन के लिए Spirituality (अध्यात्म) अनिवार्य है, क्योंकि भौतिक उपलब्धियां क्षणभंगुर हैं। परम शांति की प्राप्ति केवल गुरु कृपा और शास्त्रों द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर संभव है। हमें निरंतर नाम जप करते हुए, अपने चरित्र की पवित्रता बनाए रखनी चाहिए, और अहंकार या दिखावे (पाखंड) को भक्ति से दूर रखना चाहिए। यदि भक्त इस मार्ग पर दृढ़ता से चलते हैं और नाम जप से आने वाले ताप को सहन करते हैं, तो वे इसी जन्म में मोक्ष (भगवत प्राप्ति) प्राप्त कर सकते हैं। महाराज जी ने यह भी कहा कि राष्ट्र सेवा सबसे श्रेष्ठ है, और आंतरिक शत्रुओं (काम, क्रोध आदि) पर विजय प्राप्त करना राष्ट्र को स्वतंत्र और समृद्ध बनाने के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना बाहरी शत्रुओं से लड़ना।

FAQs (5 Q&A):

  1. Spirituality के बिना जीवन कैसा है? महाराज जी के अनुसार, अध्यात्म के बिना जीवन शून्य, मृत, वासना में, व्यसन में और व्यर्थ चिंता (ओवरथिंकिंग) में डूबा हुआ होता है। रुपया, मकान, पुत्र जैसी लौकिक उन्नति शरीर छूटने पर स्वप्निक हो जाती है, इसलिए अध्यात्म अनिवार्य है।

  2. भगवत प्राप्ति का मूल आधार क्या है? भगवत प्राप्ति का मूल आधार न तो ज्ञान मार्ग है और न ही भक्ति मार्ग, बल्कि केवल गुरु कृपा है। गुरु कृपा होने पर ही भजन से भक्ति, ज्ञान और वैराग्य सब एक साथ प्राप्त होते हैं।

  3. नाम जप करने पर हृदय में जलन क्यों होती है? प्रारंभिक अवस्था में नाम जप से हृदय में जलन (ताप) इसलिए पैदा होती है क्योंकि नाम जप हमारे अंदर के पाप रूपी फोड़े का ऑपरेशन करता है। यह ताप पाप के नष्ट होने का प्रतीक है, जिसे सहन करने पर ही हृदय आनंद से नाच उठता है।

  4. संशय और चिंता से मुक्ति पाने के लिए क्या करें? संशय और चिंता से मुक्ति पाने के लिए शास्त्रों का स्वाध्याय और काम-क्रोधादि पर विजय प्राप्त कर चुके महापुरुषों का संग करना चाहिए। साधु संग से ही विवेक जागृत होता है, जिससे सभी संशयों का नाश हो जाता है।

  5. भक्ति मार्ग में दिखावा (पाखंड) क्यों हानिकारक है? दिखावा या पाखंड भक्ति को नष्ट कर देता है क्योंकि इसका उद्देश्य भगवान को रिझाना नहीं, बल्कि संसार से सम्मान या वाहवाही प्राप्त करके अपनी वासनाओं की पूर्ति करना होता है। गुप्त भजन साधना ही सही फल प्रदान करती है।

नीरज अहलावत | संस्थापक एवं मुख्य संपादक — Dainik Reality News Dainik Reality News में हम खबरों को केवल प्रकाशित नहीं करते, समझते हैं, विश्लेषित करते हैं, और तथ्यों की पुष्टि के बाद ही आपके सामने रखते हैं। हमारा विश्वास है कि पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं—एक ज़िम्मेदारी है। इसी विचारधारा के साथ नीरज अहलावत, Dainik Reality News के संस्थापक एवं मुख्य संपादक, वर्तमान डिजिटल पत्रकारिता जगत में एक प्रखर और विश्वसनीय नाम के रूप में स्थापित हुए हैं। पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया में 10+ वर्षों का गहन अनुभव रखते हुए उन्होंने राजनीति, अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और सामाजिक मुद्दों पर लगातार शोध-आधारित रिपोर्टिंग की है। उनके लेख वस्तुनिष्ठता, तथ्य-आधारित विश्लेषण और संतुलित दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। नी‍रज का मानना है कि "खबर सिर्फ़ लिखी नहीं जाती, उसकी आत्मा समझनी होती है।" इसी सोच ने Dainik Reality News को पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की राह पर आगे बढ़ाया। नीरज अहलावत न सिर्फ़ एक संपादक हैं, बल्कि Digital Strategy, SEO एवं Web Media Growth के विशेषज्ञ भी हैं। आधुनिक तकनीक, एल्गोरिथ्म और यूज़र व्यवहार की गहराई को समझते हुए वे न्यूज़ इकोसिस्टम को नए युग की पत्रकारिता के साथ जोड़ते हैं — ताकि ज़रूरी मुद्दे केवल लिखे ना जाएँ, लोगों तक पहुँचें भी। प्रमुख कार्यक्षेत्र एवं विशेषज्ञता ✔ राजनीतिक एवं आर्थिक विश्लेषण ✔ डिजिटल पत्रकारिता एवं रिपोर्टिंग ✔ मीडिया रणनीति, SEO और कंटेंट विस्तार ✔ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समसामयिक विषय ✔ तथ्यात्मक अनुसंधान एवं निष्पक्ष लेखन Articles by Author
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