Siliguri Corridor Security: चिकन नेक पर भारत का 'ब्रह्मास्त्र', किशनगंज और बंगाल में सेना ने तैयार किए नए ठिकाने
Siliguri Corridor Security: भारतीय सेना ने 'चिकन नेक' की सुरक्षा अभेद्य करने के लिए किशनगंज और उत्तर बंगाल में नए सैन्य ठिकाने बनाए हैं। जानें कैसे यह कदम चीन की चुनौतियों का जवाब देगा और पूर्वोत्तर भारत को सुरक्षित रखेगा।
Siliguri Corridor Security: चिकन नेक पर भारत का 'ब्रह्मास्त्र', किशनगंज और बंगाल में सेना ने तैयार किए नए ठिकाने
सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास गश्त करते भारतीय सेना के जवान (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली/किशनगंज: राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से एक बेहद अहम खबर सामने आई है। भारतीय सेना ने पूर्वोत्तर भारत की 'लाइफलाइन' कहे जाने वाले सिलीगुड़ी कॉरिडोर (Siliguri Corridor) की सुरक्षा को अभेद्य बनाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है।
ताजा जानकारी के मुताबिक, सेना ने बिहार के किशनगंज (Kishanganj) और पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्सों में नए सैन्य ठिकाने (New Army Bases) स्थापित करने की प्रक्रिया तेज कर दी है। सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम डोकलाम और हालिया चीनी गतिविधियों को देखते हुए उठाया गया है।
🔹 'चिकन नेक' की सुरक्षा का नया ब्लूप्रिंट
सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे आम भाषा में 'चिकन नेक' (Chicken's Neck) कहा जाता है, भारत के लिए भौगोलिक रूप से सबसे संवेदनशील इलाकों में से एक है। यह महज 20 से 22 किलोमीटर चौड़ा गलियारा है जो पूरे पूर्वोत्तर भारत (Northeast India) को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है।
सूत्रों के अनुसार, सेना ने अब यहां अपनी उपस्थिति को केवल गश्त तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जा रहा है:
- किशनगंज में नया बेस: बिहार का किशनगंज जिला, जो सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पश्चिमी छोर पर है, अब एक रणनीतिक गढ़ बन रहा है।
- असम और बंगाल में विस्तार: सिलीगुड़ी के अलावा, उत्तर बंगाल और असम के धुबरी जैसे इलाकों में भी निगरानी तंत्र मजबूत किया गया है।
🔹 किशनगंज ही क्यों बना सामरिक केंद्र?
किशनगंज की भौगोलिक स्थिति इसे सेना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है। यह जिला नेपाल और बांग्लादेश की सीमाओं के बेहद करीब है।
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कभी युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होती है और दुश्मन सिलीगुड़ी कॉरिडोर को काटने की कोशिश करता है, तो किशनगंज में तैनात सेना की टुकड़ियाँ 'रैपिड रिस्पॉन्स टीम' के रूप में तुरंत मोर्चा संभाल सकती हैं।
— (रक्षा मामलों के जानकार)
🔹 चीन और डोकलाम का 'फैक्टर'
इस तैयारी के पीछे सबसे बड़ी वजह चीन (China) की सीमा पर बढ़ती गतिविधियां हैं। आपको याद होगा कि 2017 में डोकलाम विवाद (Doklam Standoff) इसी कॉरिडोर के पास हुआ था। चुंबी घाटी (Chumbi Valley) में चीन की उपस्थिति भारत के लिए हमेशा से चिंता का विषय रही है।
चीन लगातार भूटान और नेपाल की सीमाओं के पास अपना इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत कर रहा है। ऐसे में भारत का यह कदम एक 'काउंटर-बैलेंस' (Counter-Balance) की तरह देखा जा रहा है।
सामरिक बदलाव के प्रमुख बिंदु:
- सर्विलांस: ड्रोन और सैटेलाइट इमेजरी के जरिए 24x7 निगरानी।
- लॉजिस्टिक्स: हथियारों और रसद की आपूर्ति के लिए नए गोदाम।
- एयर कनेक्टिविटी: बागडोगरा के अलावा नए हेलीपैड्स का निर्माण।
📊 एक नजर: सिलीगुड़ी कॉरिडोर की संवेदनशीलता
नीचे दी गई तालिका से आप समझ सकते हैं कि यह इलाका इतना महत्वपूर्ण क्यों है:
| विवरण | जानकारी |
|---|---|
| कुल लंबाई | लगभग 60 किमी |
| औसतन चौड़ाई | 20-22 किमी |
| सीमावर्ती देश | नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, चीन |
| खतरा | चीन की चुंबी घाटी से निकटता |
| नई तैयारी | किशनगंज (बिहार) में बेस, एयर डिफेंस सिस्टम |
🔹 भविष्य की रणनीति: इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स (IBG)
सिर्फ बेस बनाना ही काफी नहीं है। भारतीय सेना अब इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स (IBG) की अवधारणा पर काम कर रही है। इसका मतलब है कि युद्ध की स्थिति में अलग-अलग जगहों से फौज बुलाने के बजाय, एक ही जगह पर टैंक, तोपखाने, पैदल सेना और एयर सपोर्ट मौजूद रहेगा। किशनगंज और उत्तर बंगाल के नए बेस इसी रणनीति का हिस्सा माने जा रहे हैं।
निष्कर्ष:
सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा भारत की संप्रभुता से जुड़ा मामला है। किशनगंज और बंगाल में नए सैन्य ठिकानों का निर्माण यह साफ संकेत देता है कि भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए आक्रामक और रक्षात्मक, दोनों ही मोर्चों पर पूरी तरह तैयार है। यह "न्यू इंडिया" की वह तस्वीर है जो अपनी कमजोर नसों (Chicken's Neck) को अब अपनी ताकत (Iron Fist) में बदल रहा है।