Bageshwar Dham: पूज्य महाराज जी ने धीरेन्द्र शास्त्री को बताया 'ठाकुर जी का निज जन', दिए बड़े निर्देश

Bageshwar Dham के पीठाधीश्वर धीरेन्द्र शास्त्री और पूज्य महाराज जी की वृंदावन में हुई भेंट। महाराज जी ने बताया कैसे भक्त माया से मुक्त हों और प्रतिकूलताओं को भगवान का प्रसाद मानें।

Bageshwar Dham: पूज्य महाराज जी ने धीरेन्द्र शास्त्री को बताया 'ठाकुर जी का निज जन', दिए बड़े निर्देश
श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी और पूज्य महाराज जी का वार्तालाप

By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 15 Oct 2025

Bageshwar Dham के पीठाधीश्वर श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी और एक पूज्य महाराज जी के बीच वृंदावन में हुई हालिया भेंट ने spiritual जगत में गहन चर्चाओं को जन्म दिया है। यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं थी, बल्कि सनातन धर्म, भगवत निष्ठा और कलियुग में भक्तों के मार्गदर्शन को लेकर एक गंभीर और महत्वपूर्ण संवाद था। इस वार्तालाप में पूज्य महाराज जी ने श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी को हृदय से आशीर्वाद दिया और उन्हें 'ठाकुर जी का निज जन' और 'भगवान का पार्षद' बताते हुए उनके वर्तमान दायित्वों की महत्ता को रेखांकित किया। इस चर्चा का मुख्य विषय यह था कि वर्तमान समय में जब जीव माया के जाल में फंसे हुए हैं, तब कैसे भगवत नाम और गुणों की गर्जना द्वारा उन्हें मुक्त किया जा सकता है, साथ ही एक भक्त को अपने कार्य में क्या सावधानी रखनी चाहिए। यह संपूर्ण बातचीत केवल दो संतों का मिलन नहीं, बल्कि उन जीवों के लिए आशा और विश्वास का स्रोत है जो माया के दुर्जेय बंधन से पार पाने का मार्ग खोज रहे हैं, तथा यह बताती है कि बड़े से बड़े संकट को भी दृढ़ भरोसे के बल पर किस प्रकार गले का हार बनाया जा सकता है। यह सनातन शक्ति का वह प्रकटीकरण है, जहाँ एक अनुभवी संत अपनी कृपा और ज्ञान का बल दूसरे भक्त को सौंपता है, ताकि जगत मंगल का कार्य निर्बाध गति से चलता रहे।

यह वार्तालाप इस बात पर केंद्रित रही कि श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी (Bageshwar Dham) का कार्य कितना महत्वपूर्ण और दैवीय रूप से प्रेरित है। पूज्य महाराज जी ने स्पष्ट किया कि शास्त्री जी भगवान के पार्षद हैं, जो मायाजाल में फंसे जीवों को माया मुक्त करने के लिए उनके बीच जाते हैं। उनका कार्य क्षेत्र मुंबई या किसी एक स्थान तक सीमित नहीं, बल्कि उन्हें जहाँ भी जाने का अवसर मिले, वहाँ उन्हें भगवत नाम, भगवत गुण महिमा की गर्जना करनी चाहिए, क्योंकि नाम और गुण में इतनी अपार सामर्थ्य है कि इससे माया तुरंत भाग जाती है। महाराज जी ने जोर देकर कहा कि कोई भी ज्ञान-विज्ञान, साधना या तपस्या इस दुरंत माया से पार नहीं करा सकती, क्योंकि यह ज्ञानियों के चित्त का भी अपहरण कर लेती है। यदि कोई जीव छूट सकता है, तो वह केवल भगवान के नाम, गुण, लीला, और धाम का आश्रय लेकर ही छूट सकता है, क्योंकि माया स्वयं भगवान की दासी है, और जब कोई जीव भगवान का आश्रय लेता है, तो वह उसे मार्ग दे देती है, और जीव पार हो जाता है। महाराज जी ने हृदय से आशीर्वाद देते हुए कामना की कि श्री शास्त्री जी स्वस्थ शरीर और स्वस्थ बुद्धि के साथ रहें, और खूब डंके की चोट से भगवन नाम गुणगान करें, क्योंकि ऐसा करने वाले को कोई परास्त नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी कहा कि जिसके रखवार रमापति जासु (भगवान जिसके रक्षक हों) हों, उसकी सीमा को भी कोई नहीं छू सकता।

पूज्य महाराज जी ने भक्ति मार्ग की श्रेष्ठता को समझाते हुए बताया कि जिन्हें कानों से भगवत कथा सुनने को मिल गई और जिह्वा से नाम जपने को मिल गया, वे तुरंत माया पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। इसका प्रमाण देते हुए उन्होंने बताया कि धुंधकारी ने कोई सत्कर्म नहीं किया था, लेकिन केवल भगवत लीला गुणानुवाद श्रवण मात्र से ही उसे भगवत प्राप्ति हो गई। इसी तरह, ब्राह्मण पत्नियों को भी जो लाभ मिला, वह केवल भगवत कथा अनुराग से मिला, जबकि ब्राह्मण जन स्वयं सांगोपांग सत क्रियाओं से युक्त थे। महाराज जी ने यह भी चेतावनी दी कि भगवत प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा अहंकार है। यदि साधक को जरा भी साधन का अहंकार हुआ—जैसे "मैं फलाहारी हूँ", "मैं मौनी हूँ", "मैं त्यागी हूँ"—तो यह 'मैं' भगवत प्राप्ति नहीं होने देगा। इसके विपरीत, जो इस 'मैं' का शमन करता है, वह भगवान का दासत्व करता है। उन्होंने कहा कि जितना हम अपने को नीच समझेंगे (तृण से भी नीचा), उतना ही भगवान हमें महान बनाते चले जाते हैं। इसलिए, साधक को दैन्य भाव से जगत को भगवान के नाम और गुण महिमा का पान कराना चाहिए, और यही Bageshwar Dham का प्रमुख संदेश भी होना चाहिए।

भगवान के पार्षद: धीरेन्द्र शास्त्री जी का मूल उद्देश्य और दायित्व

पूज्य महाराज जी ने श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी के कार्य की दिव्यता को रेखांकित करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य उन लोगों को जागृत करना है जो अपने संबंध को भूले हुए हैं। उन्हें यह बात समझानी है कि सभी जीव भगवत स्वरूप हैं और प्रभु के जन हैं। जब यह अनुभूति हो जाती है कि हम प्रभु के जन हैं, तभी वास्तविक आनंद की अनुभूति होती है। महाराज जी ने श्री शास्त्री जी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उनकी बुद्धि और शरीर दोनों स्वस्थ रहें, ताकि वे यह कार्य पूर्ण रूप से कर सकें। उन्होंने कहा कि शास्त्री जी स्वयं माया में नहीं फंसे थे, बल्कि उन्हें तो उन लोगों को मुक्त करना है जो माया में फंसे हैं, और यह कार्य भगवान के यश को सुनाकर किया जाता है, क्योंकि भगवत यश में इतनी सामर्थ्य है कि श्रवण मात्र से भगवत प्राप्ति हो जाती है। चूंकि श्री शास्त्री जी ने हनुमान जी का दुपार साक्ष प्राप्त किया है और गुरुजनों की पोटली (संपत्ति) के बल पर संतों की कृपा प्राप्त की है, इसलिए उन्हें इसी बल पर आगे बढ़ना चाहिए। महाराज जी ने कहा, ऐसी भावना जो संसार के भूले हुए प्राणियों को भगवत धर्म में स्थित करे और परम प्रीति में जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करे, वह भगवान के द्वारा प्रकट की हुई भावना होती है।

 दुरंत माया से पार पाने का एकमात्र मार्ग: नाम जप और भगवत कथा

पूज्य महाराज जी ने स्पष्ट किया कि माया अत्यंत बलवान है और इसे पार करना अत्यंत कठिन है। उन्होंने कहा, कोई ज्ञान-विज्ञान इस दुरंत माया से पार नहीं करा सकता, क्योंकि यह महामाया ज्ञानियों के चित्त को भी बलपूर्वक विमोहित कर देती है। इसलिए, जीव के पास एकमात्र सहारा भगवान के नाम, गुण, लीला और धाम का है। महाराज जी ने उदाहरण दिया कि जिन्हें कानों से भगवत कथा सुनने को मिली और जिह्वा से नाम जपने को मिला, वे तुरंत माया पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। उन्होंने समझाया कि अहंकार ही वह प्रश्नवाचक चिन्ह है, जो माया खड़ी कर देती है। यदि कोई भक्त साधना का अहंकार त्यागकर केवल भगवान का दासत्व करता है और स्वयं को नीच समझता है, तो भगवान उसे महान बनाते जाते हैं। यह बल किसी व्यक्तिगत साधना या ज्ञान का नहीं, बल्कि प्रिया प्रीतम (वृंदावन रानी) के बल से प्राप्त होता है।

 सनातन धर्म की स्वयंभू सत्ता और एकता यात्रा का महत्व

श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी ने बताया कि वे वृंदावन में हैं और सनातन एकता यात्रा के एक छोटे क्रम पर काम कर रहे हैं, जिसमें दिल्ली से वृंदावन के लिए पैदल यात्रा करके सभी को जोड़ा जाएगा। इसके उत्तर में, पूज्य महाराज जी ने सनातन धर्म की मूलभूत परिभाषा दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि सनातन धर्म किसी व्यक्ति के द्वारा स्थापित किया हुआ नहीं है। सनातन स्वयंभू है, ठीक वैसे ही जैसे वेद स्वयंभू हैं। उन्होंने समझाया कि ब्रह्म सनातन है, वायु सनातन है, सूर्य, आकाश और भूमि भी सनातन हैं। उन्होंने कहा, सनातन के बिना किसी की सत्ता ही नहीं है। यदि हम निष्काम भाव से भगवत प्रीति के लिए यह बात करते हैं, तो कहीं भी कोई भी हो, उसे सनातन से जुड़ना ही पड़ेगा। जैसे, वायु से जुड़ना, सूर्य के प्रकाश से जीना, आकाश के नीचे रहना और धरती में रहना, यह सब सनातन में ही रहना है। यह सनातन धर्म ही है, जिसके बिना किसी की सत्ता नहीं है। महाराज जी ने श्री शास्त्री जी की इस भावना को सराहा जो भूले हुए प्राणियों को भगवत धर्म में स्थित करने के लिए प्रेरित करती है।

 भक्त की सुरक्षा की गारंटी: ‘हम बच्चा हैं’ का भाव और प्रभु पर निर्भरता

श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी ने पूज्य महाराज जी से पूछा कि गुरुजनों की कृपा से जो मनोरथ पूरे हो रहे हैं, उनमें क्या सावधानी रखनी पड़ती है। यह प्रश्न Bageshwar Dham के लाखों अनुयायियों के मन में भी उठता है कि इतने बड़े कार्य को चलाने में क्या सावधानी ज़रूरी है। महाराज जी ने इसका बहुत गहन उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि बच्चा तो बेपरवाही से चलता है, सावधानी तो माता-पिता करते हैं। उन्होंने श्री शास्त्री जी को याद दिलाया कि वे ज्ञानी नहीं हैं, बल्कि भगवान के प्रिय भक्त और शरणागत दास हैं। सावधानी तो भगवान स्वयं रखेंगे। उन्होंने कहा, 'तुम्हारे बल हम डरपतराए'—उनका बल ही उनकी सुरक्षा करता है। महाराज जी ने कहा कि एकमात्र सावधानी यही रखनी है कि हमारे दिमाग में यह बात बनी रहे कि "हम बच्चा हैं"। उन्होंने इसकी तुलना एक ऐसे छोटे बच्चे से की जिसके पंख नहीं निकले हैं और वह केवल मां की चोंच से लाए हुए आहार पर ही भरोसा रखता है (अजात पक्ष आयु मातरम)। उन्होंने कहा, हममें कोई साधना का बल, या ज्ञान का बल नहीं है। भक्तों का बल केवल प्रिया प्रीतम (वृंदावन रानी) हैं। चूंकि भक्त उन्मत्त होकर उनके चिंतन में चल रहे हैं, इसलिए सावधानी प्रभु को रखनी है, भक्त को नहीं।

 प्रतिकूलताएँ क्यों आती हैं? तलवार का हार बनने का रहस्य

वार्तालाप के दौरान श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न किया कि जो प्रतिकूलताएँ भक्त के सामने आती हैं, उनसे कैसे निपटा जाए। पूज्य महाराज जी ने उत्तर दिया कि प्रतिकूलताएँ हमें परिपक्व करने के लिए आती हैं। जब प्रतिकूलता रूपी प्रश्न आता है, तो तुरंत अंदर से अनुकूलता का उत्तर भी मिलता है, और यही भक्तों का विवेक होता है। भक्त भारी से भारी प्रतिकूलता को भी भगवान का कृपा प्रसाद मानकर, भगवत बल से उसे चीरते हुए आगे बढ़ जाते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि जहाँ भगवान का चिंतन होता है, वहाँ कोई भी प्रतिकूलता, प्रतिकूलता नहीं रहती, सब अनुकूलता हो जाती है। महाराज जी ने स्वयं का उदाहरण दिया, कि उन्हें किडनी फेल होने पर जो वास्तविक शरणागति का बोध हुआ, वह 20-22 वर्ष की साधना से भी नहीं हुआ। यह बोध तब हुआ जब शरीर साधन के लायक नहीं रहा और 'मैं साधन करता हूँ' का साधना का अहंकार नष्ट हो गया। उन्होंने कहा, "हम तो कहते हैं बार-बार जन्म हो और हर बार जन्म से ही किडनी फेल हो और प्रिया प्रीतम की थसक में रहूं"। इसका अर्थ है कि कष्ट या प्रतिकूलता तभी आती है जब भगवान चित्त चुराना चाहते हैं, और यह तभी होता है जब भक्त किसी योग्य नहीं रहता और अहंकार नष्ट हो जाता है। उन्होंने कहा कि भक्तों के जीवन में तलवार गले तक आती है, लेकिन यदि भरोसा दृढ़ हो तो वह तलवार, तलवार नहीं रह जाती, बल्कि गले का हार बन जाती है। भक्तों को हर समय राम प्रताप सुमिर बल—भगवान के प्रताप और बल को याद रखना चाहिए।

Conclusion

श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी और पूज्य महाराज जी की यह गहन चर्चा इस बात को स्थापित करती है कि आध्यात्मिक मार्ग पर सफलता केवल ईश्वरीय कृपा, दैन्य भाव और दृढ़ विश्वास पर निर्भर करती है। महाराज जी ने शास्त्री जी को ठाकुर जी का पार्षद बताते हुए उन्हें Bageshwar Dham के माध्यम से केवल भगवत नाम की गर्जना करने का निर्देश दिया, क्योंकि यही माया पर विजय पाने का एकमात्र उपाय है। उन्होंने यह भी सिखाया कि भक्त को अपनी सुरक्षा की चिंता न करते हुए, स्वयं को प्रभु का बच्चा समझना चाहिए, क्योंकि सावधानी तो स्वयं भगवान रखते हैं। सनातन धर्म स्वयंभू है और इसका उद्देश्य जीवों को यह जागृत कराना है कि वे प्रभु के जन हैं। भविष्य की संभावना यही है कि श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी, इन गुरुजनों के आशीर्वाद और मार्गदर्शन के साथ, उसी दृढ़ भरोसे के बल पर जगत मंगल का कार्य जारी रखेंगे, जहाँ प्रतिकूलताएँ केवल परिपक्वता लाने का साधन मात्र बन जाती हैं।


FAQs (5 Q&A):

1. Bageshwar Dham के धीरेन्द्र शास्त्री को पूज्य महाराज जी ने क्या कहा? पूज्य महाराज जी ने श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी को Bageshwar Dham का प्रतिनिधित्व करने वाले भगवान का पार्षद और ठाकुर जी का निज जन कहा। उन्होंने कहा कि शास्त्री जी का कार्य मायाजाल में फंसे जीवों को भगवत नाम और गुण महिमा की गर्जना करके मुक्त करना है, क्योंकि भगवान जिसके रक्षक होते हैं, उसकी सीमा को कोई छू नहीं सकता।

2. पूज्य महाराज जी के अनुसार, माया से पार पाने का एकमात्र उपाय क्या है? पूज्य महाराज जी के अनुसार, कोई ज्ञान या विज्ञान इस दुरंत माया से पार नहीं करा सकता। माया से पार पाने का एकमात्र उपाय भगवान के नाम, गुण, लीला और धाम का आश्रय लेना है। जिन्हें कानों से भगवत कथा सुनने और जिह्वा से नाम जपने को मिल गया, वे तुरंत माया पर विजय प्राप्त कर लेते हैं, यही Bageshwar Dham के लिए संदेश है।

3. कार्य करते समय धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी को क्या सावधानी रखनी चाहिए? महाराज जी ने कहा कि शास्त्री जी को कोई सावधानी नहीं रखनी है, बल्कि सावधानी तो भगवान रखेंगे। एकमात्र सावधानी यह रखनी है कि उनके दिमाग में यह बना रहे कि वे बच्चा हैं और उनमें कोई साधना या ज्ञान का बल नहीं है; उनका बल केवल प्रिया प्रीतम (वृंदावन रानी) हैं, इसी दैन्य भाव से Bageshwar Dham का कार्य आगे बढ़ेगा।

4. सनातन धर्म को महाराज जी ने कैसे परिभाषित किया? महाराज जी ने कहा कि सनातन धर्म किसी व्यक्ति द्वारा स्थापित नहीं किया गया है, यह स्वयंभू है, जैसे वेद स्वयंभू हैं। ब्रह्म, वायु, सूर्य, आकाश और भूमि भी सनातन हैं। सनातन के बिना किसी की सत्ता नहीं है, और इसका मूल कार्य जीवों को यह जागृत कराना है कि वे Bageshwar Dham के माध्यम से प्रभु के जन हैं।

5. प्रतिकूलताएँ भक्तों के जीवन में क्यों आती हैं? पूज्य महाराज जी ने स्पष्ट किया कि प्रतिकूलताएँ भक्तों को परिपक्व करने के लिए आती हैं। भक्त भारी से भारी प्रतिकूलता को भी भगवान का कृपा प्रसाद मानकर आगे बढ़ जाते हैं। यदि भरोसा दृढ़ हो, तो तलवार भी तलवार नहीं रहती, बल्कि Bageshwar Dham के भक्तों के लिए गले का हार बन जाती है।

नीरज अहलावत | संस्थापक एवं मुख्य संपादक — Dainik Reality News Dainik Reality News में हम खबरों को केवल प्रकाशित नहीं करते, समझते हैं, विश्लेषित करते हैं, और तथ्यों की पुष्टि के बाद ही आपके सामने रखते हैं। हमारा विश्वास है कि पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं—एक ज़िम्मेदारी है। इसी विचारधारा के साथ नीरज अहलावत, Dainik Reality News के संस्थापक एवं मुख्य संपादक, वर्तमान डिजिटल पत्रकारिता जगत में एक प्रखर और विश्वसनीय नाम के रूप में स्थापित हुए हैं। पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया में 10+ वर्षों का गहन अनुभव रखते हुए उन्होंने राजनीति, अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और सामाजिक मुद्दों पर लगातार शोध-आधारित रिपोर्टिंग की है। उनके लेख वस्तुनिष्ठता, तथ्य-आधारित विश्लेषण और संतुलित दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। नी‍रज का मानना है कि "खबर सिर्फ़ लिखी नहीं जाती, उसकी आत्मा समझनी होती है।" इसी सोच ने Dainik Reality News को पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की राह पर आगे बढ़ाया। नीरज अहलावत न सिर्फ़ एक संपादक हैं, बल्कि Digital Strategy, SEO एवं Web Media Growth के विशेषज्ञ भी हैं। आधुनिक तकनीक, एल्गोरिथ्म और यूज़र व्यवहार की गहराई को समझते हुए वे न्यूज़ इकोसिस्टम को नए युग की पत्रकारिता के साथ जोड़ते हैं — ताकि ज़रूरी मुद्दे केवल लिखे ना जाएँ, लोगों तक पहुँचें भी। प्रमुख कार्यक्षेत्र एवं विशेषज्ञता ✔ राजनीतिक एवं आर्थिक विश्लेषण ✔ डिजिटल पत्रकारिता एवं रिपोर्टिंग ✔ मीडिया रणनीति, SEO और कंटेंट विस्तार ✔ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समसामयिक विषय ✔ तथ्यात्मक अनुसंधान एवं निष्पक्ष लेखन Articles by Author

Bageshwar Dham: पूज्य महाराज जी ने धीरेन्द्र शास्त्री को बताया 'ठाकुर जी का निज जन', दिए बड़े निर्देश

Bageshwar Dham के पीठाधीश्वर धीरेन्द्र शास्त्री और पूज्य महाराज जी की वृंदावन में हुई भेंट। महाराज जी ने बताया कैसे भक्त माया से मुक्त हों और प्रतिकूलताओं को भगवान का प्रसाद मानें।

Bageshwar Dham: पूज्य महाराज जी ने धीरेन्द्र शास्त्री को बताया 'ठाकुर जी का निज जन', दिए बड़े निर्देश
श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी और पूज्य महाराज जी का वार्तालाप

By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 15 Oct 2025

Bageshwar Dham के पीठाधीश्वर श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी और एक पूज्य महाराज जी के बीच वृंदावन में हुई हालिया भेंट ने spiritual जगत में गहन चर्चाओं को जन्म दिया है। यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं थी, बल्कि सनातन धर्म, भगवत निष्ठा और कलियुग में भक्तों के मार्गदर्शन को लेकर एक गंभीर और महत्वपूर्ण संवाद था। इस वार्तालाप में पूज्य महाराज जी ने श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी को हृदय से आशीर्वाद दिया और उन्हें 'ठाकुर जी का निज जन' और 'भगवान का पार्षद' बताते हुए उनके वर्तमान दायित्वों की महत्ता को रेखांकित किया। इस चर्चा का मुख्य विषय यह था कि वर्तमान समय में जब जीव माया के जाल में फंसे हुए हैं, तब कैसे भगवत नाम और गुणों की गर्जना द्वारा उन्हें मुक्त किया जा सकता है, साथ ही एक भक्त को अपने कार्य में क्या सावधानी रखनी चाहिए। यह संपूर्ण बातचीत केवल दो संतों का मिलन नहीं, बल्कि उन जीवों के लिए आशा और विश्वास का स्रोत है जो माया के दुर्जेय बंधन से पार पाने का मार्ग खोज रहे हैं, तथा यह बताती है कि बड़े से बड़े संकट को भी दृढ़ भरोसे के बल पर किस प्रकार गले का हार बनाया जा सकता है। यह सनातन शक्ति का वह प्रकटीकरण है, जहाँ एक अनुभवी संत अपनी कृपा और ज्ञान का बल दूसरे भक्त को सौंपता है, ताकि जगत मंगल का कार्य निर्बाध गति से चलता रहे।

यह वार्तालाप इस बात पर केंद्रित रही कि श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी (Bageshwar Dham) का कार्य कितना महत्वपूर्ण और दैवीय रूप से प्रेरित है। पूज्य महाराज जी ने स्पष्ट किया कि शास्त्री जी भगवान के पार्षद हैं, जो मायाजाल में फंसे जीवों को माया मुक्त करने के लिए उनके बीच जाते हैं। उनका कार्य क्षेत्र मुंबई या किसी एक स्थान तक सीमित नहीं, बल्कि उन्हें जहाँ भी जाने का अवसर मिले, वहाँ उन्हें भगवत नाम, भगवत गुण महिमा की गर्जना करनी चाहिए, क्योंकि नाम और गुण में इतनी अपार सामर्थ्य है कि इससे माया तुरंत भाग जाती है। महाराज जी ने जोर देकर कहा कि कोई भी ज्ञान-विज्ञान, साधना या तपस्या इस दुरंत माया से पार नहीं करा सकती, क्योंकि यह ज्ञानियों के चित्त का भी अपहरण कर लेती है। यदि कोई जीव छूट सकता है, तो वह केवल भगवान के नाम, गुण, लीला, और धाम का आश्रय लेकर ही छूट सकता है, क्योंकि माया स्वयं भगवान की दासी है, और जब कोई जीव भगवान का आश्रय लेता है, तो वह उसे मार्ग दे देती है, और जीव पार हो जाता है। महाराज जी ने हृदय से आशीर्वाद देते हुए कामना की कि श्री शास्त्री जी स्वस्थ शरीर और स्वस्थ बुद्धि के साथ रहें, और खूब डंके की चोट से भगवन नाम गुणगान करें, क्योंकि ऐसा करने वाले को कोई परास्त नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी कहा कि जिसके रखवार रमापति जासु (भगवान जिसके रक्षक हों) हों, उसकी सीमा को भी कोई नहीं छू सकता।

पूज्य महाराज जी ने भक्ति मार्ग की श्रेष्ठता को समझाते हुए बताया कि जिन्हें कानों से भगवत कथा सुनने को मिल गई और जिह्वा से नाम जपने को मिल गया, वे तुरंत माया पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। इसका प्रमाण देते हुए उन्होंने बताया कि धुंधकारी ने कोई सत्कर्म नहीं किया था, लेकिन केवल भगवत लीला गुणानुवाद श्रवण मात्र से ही उसे भगवत प्राप्ति हो गई। इसी तरह, ब्राह्मण पत्नियों को भी जो लाभ मिला, वह केवल भगवत कथा अनुराग से मिला, जबकि ब्राह्मण जन स्वयं सांगोपांग सत क्रियाओं से युक्त थे। महाराज जी ने यह भी चेतावनी दी कि भगवत प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा अहंकार है। यदि साधक को जरा भी साधन का अहंकार हुआ—जैसे "मैं फलाहारी हूँ", "मैं मौनी हूँ", "मैं त्यागी हूँ"—तो यह 'मैं' भगवत प्राप्ति नहीं होने देगा। इसके विपरीत, जो इस 'मैं' का शमन करता है, वह भगवान का दासत्व करता है। उन्होंने कहा कि जितना हम अपने को नीच समझेंगे (तृण से भी नीचा), उतना ही भगवान हमें महान बनाते चले जाते हैं। इसलिए, साधक को दैन्य भाव से जगत को भगवान के नाम और गुण महिमा का पान कराना चाहिए, और यही Bageshwar Dham का प्रमुख संदेश भी होना चाहिए।

भगवान के पार्षद: धीरेन्द्र शास्त्री जी का मूल उद्देश्य और दायित्व

पूज्य महाराज जी ने श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी के कार्य की दिव्यता को रेखांकित करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य उन लोगों को जागृत करना है जो अपने संबंध को भूले हुए हैं। उन्हें यह बात समझानी है कि सभी जीव भगवत स्वरूप हैं और प्रभु के जन हैं। जब यह अनुभूति हो जाती है कि हम प्रभु के जन हैं, तभी वास्तविक आनंद की अनुभूति होती है। महाराज जी ने श्री शास्त्री जी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उनकी बुद्धि और शरीर दोनों स्वस्थ रहें, ताकि वे यह कार्य पूर्ण रूप से कर सकें। उन्होंने कहा कि शास्त्री जी स्वयं माया में नहीं फंसे थे, बल्कि उन्हें तो उन लोगों को मुक्त करना है जो माया में फंसे हैं, और यह कार्य भगवान के यश को सुनाकर किया जाता है, क्योंकि भगवत यश में इतनी सामर्थ्य है कि श्रवण मात्र से भगवत प्राप्ति हो जाती है। चूंकि श्री शास्त्री जी ने हनुमान जी का दुपार साक्ष प्राप्त किया है और गुरुजनों की पोटली (संपत्ति) के बल पर संतों की कृपा प्राप्त की है, इसलिए उन्हें इसी बल पर आगे बढ़ना चाहिए। महाराज जी ने कहा, ऐसी भावना जो संसार के भूले हुए प्राणियों को भगवत धर्म में स्थित करे और परम प्रीति में जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करे, वह भगवान के द्वारा प्रकट की हुई भावना होती है।

 दुरंत माया से पार पाने का एकमात्र मार्ग: नाम जप और भगवत कथा

पूज्य महाराज जी ने स्पष्ट किया कि माया अत्यंत बलवान है और इसे पार करना अत्यंत कठिन है। उन्होंने कहा, कोई ज्ञान-विज्ञान इस दुरंत माया से पार नहीं करा सकता, क्योंकि यह महामाया ज्ञानियों के चित्त को भी बलपूर्वक विमोहित कर देती है। इसलिए, जीव के पास एकमात्र सहारा भगवान के नाम, गुण, लीला और धाम का है। महाराज जी ने उदाहरण दिया कि जिन्हें कानों से भगवत कथा सुनने को मिली और जिह्वा से नाम जपने को मिला, वे तुरंत माया पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। उन्होंने समझाया कि अहंकार ही वह प्रश्नवाचक चिन्ह है, जो माया खड़ी कर देती है। यदि कोई भक्त साधना का अहंकार त्यागकर केवल भगवान का दासत्व करता है और स्वयं को नीच समझता है, तो भगवान उसे महान बनाते जाते हैं। यह बल किसी व्यक्तिगत साधना या ज्ञान का नहीं, बल्कि प्रिया प्रीतम (वृंदावन रानी) के बल से प्राप्त होता है।

 सनातन धर्म की स्वयंभू सत्ता और एकता यात्रा का महत्व

श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी ने बताया कि वे वृंदावन में हैं और सनातन एकता यात्रा के एक छोटे क्रम पर काम कर रहे हैं, जिसमें दिल्ली से वृंदावन के लिए पैदल यात्रा करके सभी को जोड़ा जाएगा। इसके उत्तर में, पूज्य महाराज जी ने सनातन धर्म की मूलभूत परिभाषा दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि सनातन धर्म किसी व्यक्ति के द्वारा स्थापित किया हुआ नहीं है। सनातन स्वयंभू है, ठीक वैसे ही जैसे वेद स्वयंभू हैं। उन्होंने समझाया कि ब्रह्म सनातन है, वायु सनातन है, सूर्य, आकाश और भूमि भी सनातन हैं। उन्होंने कहा, सनातन के बिना किसी की सत्ता ही नहीं है। यदि हम निष्काम भाव से भगवत प्रीति के लिए यह बात करते हैं, तो कहीं भी कोई भी हो, उसे सनातन से जुड़ना ही पड़ेगा। जैसे, वायु से जुड़ना, सूर्य के प्रकाश से जीना, आकाश के नीचे रहना और धरती में रहना, यह सब सनातन में ही रहना है। यह सनातन धर्म ही है, जिसके बिना किसी की सत्ता नहीं है। महाराज जी ने श्री शास्त्री जी की इस भावना को सराहा जो भूले हुए प्राणियों को भगवत धर्म में स्थित करने के लिए प्रेरित करती है।

 भक्त की सुरक्षा की गारंटी: ‘हम बच्चा हैं’ का भाव और प्रभु पर निर्भरता

श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी ने पूज्य महाराज जी से पूछा कि गुरुजनों की कृपा से जो मनोरथ पूरे हो रहे हैं, उनमें क्या सावधानी रखनी पड़ती है। यह प्रश्न Bageshwar Dham के लाखों अनुयायियों के मन में भी उठता है कि इतने बड़े कार्य को चलाने में क्या सावधानी ज़रूरी है। महाराज जी ने इसका बहुत गहन उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि बच्चा तो बेपरवाही से चलता है, सावधानी तो माता-पिता करते हैं। उन्होंने श्री शास्त्री जी को याद दिलाया कि वे ज्ञानी नहीं हैं, बल्कि भगवान के प्रिय भक्त और शरणागत दास हैं। सावधानी तो भगवान स्वयं रखेंगे। उन्होंने कहा, 'तुम्हारे बल हम डरपतराए'—उनका बल ही उनकी सुरक्षा करता है। महाराज जी ने कहा कि एकमात्र सावधानी यही रखनी है कि हमारे दिमाग में यह बात बनी रहे कि "हम बच्चा हैं"। उन्होंने इसकी तुलना एक ऐसे छोटे बच्चे से की जिसके पंख नहीं निकले हैं और वह केवल मां की चोंच से लाए हुए आहार पर ही भरोसा रखता है (अजात पक्ष आयु मातरम)। उन्होंने कहा, हममें कोई साधना का बल, या ज्ञान का बल नहीं है। भक्तों का बल केवल प्रिया प्रीतम (वृंदावन रानी) हैं। चूंकि भक्त उन्मत्त होकर उनके चिंतन में चल रहे हैं, इसलिए सावधानी प्रभु को रखनी है, भक्त को नहीं।

 प्रतिकूलताएँ क्यों आती हैं? तलवार का हार बनने का रहस्य

वार्तालाप के दौरान श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न किया कि जो प्रतिकूलताएँ भक्त के सामने आती हैं, उनसे कैसे निपटा जाए। पूज्य महाराज जी ने उत्तर दिया कि प्रतिकूलताएँ हमें परिपक्व करने के लिए आती हैं। जब प्रतिकूलता रूपी प्रश्न आता है, तो तुरंत अंदर से अनुकूलता का उत्तर भी मिलता है, और यही भक्तों का विवेक होता है। भक्त भारी से भारी प्रतिकूलता को भी भगवान का कृपा प्रसाद मानकर, भगवत बल से उसे चीरते हुए आगे बढ़ जाते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि जहाँ भगवान का चिंतन होता है, वहाँ कोई भी प्रतिकूलता, प्रतिकूलता नहीं रहती, सब अनुकूलता हो जाती है। महाराज जी ने स्वयं का उदाहरण दिया, कि उन्हें किडनी फेल होने पर जो वास्तविक शरणागति का बोध हुआ, वह 20-22 वर्ष की साधना से भी नहीं हुआ। यह बोध तब हुआ जब शरीर साधन के लायक नहीं रहा और 'मैं साधन करता हूँ' का साधना का अहंकार नष्ट हो गया। उन्होंने कहा, "हम तो कहते हैं बार-बार जन्म हो और हर बार जन्म से ही किडनी फेल हो और प्रिया प्रीतम की थसक में रहूं"। इसका अर्थ है कि कष्ट या प्रतिकूलता तभी आती है जब भगवान चित्त चुराना चाहते हैं, और यह तभी होता है जब भक्त किसी योग्य नहीं रहता और अहंकार नष्ट हो जाता है। उन्होंने कहा कि भक्तों के जीवन में तलवार गले तक आती है, लेकिन यदि भरोसा दृढ़ हो तो वह तलवार, तलवार नहीं रह जाती, बल्कि गले का हार बन जाती है। भक्तों को हर समय राम प्रताप सुमिर बल—भगवान के प्रताप और बल को याद रखना चाहिए।

Conclusion

श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी और पूज्य महाराज जी की यह गहन चर्चा इस बात को स्थापित करती है कि आध्यात्मिक मार्ग पर सफलता केवल ईश्वरीय कृपा, दैन्य भाव और दृढ़ विश्वास पर निर्भर करती है। महाराज जी ने शास्त्री जी को ठाकुर जी का पार्षद बताते हुए उन्हें Bageshwar Dham के माध्यम से केवल भगवत नाम की गर्जना करने का निर्देश दिया, क्योंकि यही माया पर विजय पाने का एकमात्र उपाय है। उन्होंने यह भी सिखाया कि भक्त को अपनी सुरक्षा की चिंता न करते हुए, स्वयं को प्रभु का बच्चा समझना चाहिए, क्योंकि सावधानी तो स्वयं भगवान रखते हैं। सनातन धर्म स्वयंभू है और इसका उद्देश्य जीवों को यह जागृत कराना है कि वे प्रभु के जन हैं। भविष्य की संभावना यही है कि श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी, इन गुरुजनों के आशीर्वाद और मार्गदर्शन के साथ, उसी दृढ़ भरोसे के बल पर जगत मंगल का कार्य जारी रखेंगे, जहाँ प्रतिकूलताएँ केवल परिपक्वता लाने का साधन मात्र बन जाती हैं।


FAQs (5 Q&A):

1. Bageshwar Dham के धीरेन्द्र शास्त्री को पूज्य महाराज जी ने क्या कहा? पूज्य महाराज जी ने श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी को Bageshwar Dham का प्रतिनिधित्व करने वाले भगवान का पार्षद और ठाकुर जी का निज जन कहा। उन्होंने कहा कि शास्त्री जी का कार्य मायाजाल में फंसे जीवों को भगवत नाम और गुण महिमा की गर्जना करके मुक्त करना है, क्योंकि भगवान जिसके रक्षक होते हैं, उसकी सीमा को कोई छू नहीं सकता।

2. पूज्य महाराज जी के अनुसार, माया से पार पाने का एकमात्र उपाय क्या है? पूज्य महाराज जी के अनुसार, कोई ज्ञान या विज्ञान इस दुरंत माया से पार नहीं करा सकता। माया से पार पाने का एकमात्र उपाय भगवान के नाम, गुण, लीला और धाम का आश्रय लेना है। जिन्हें कानों से भगवत कथा सुनने और जिह्वा से नाम जपने को मिल गया, वे तुरंत माया पर विजय प्राप्त कर लेते हैं, यही Bageshwar Dham के लिए संदेश है।

3. कार्य करते समय धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी को क्या सावधानी रखनी चाहिए? महाराज जी ने कहा कि शास्त्री जी को कोई सावधानी नहीं रखनी है, बल्कि सावधानी तो भगवान रखेंगे। एकमात्र सावधानी यह रखनी है कि उनके दिमाग में यह बना रहे कि वे बच्चा हैं और उनमें कोई साधना या ज्ञान का बल नहीं है; उनका बल केवल प्रिया प्रीतम (वृंदावन रानी) हैं, इसी दैन्य भाव से Bageshwar Dham का कार्य आगे बढ़ेगा।

4. सनातन धर्म को महाराज जी ने कैसे परिभाषित किया? महाराज जी ने कहा कि सनातन धर्म किसी व्यक्ति द्वारा स्थापित नहीं किया गया है, यह स्वयंभू है, जैसे वेद स्वयंभू हैं। ब्रह्म, वायु, सूर्य, आकाश और भूमि भी सनातन हैं। सनातन के बिना किसी की सत्ता नहीं है, और इसका मूल कार्य जीवों को यह जागृत कराना है कि वे Bageshwar Dham के माध्यम से प्रभु के जन हैं।

5. प्रतिकूलताएँ भक्तों के जीवन में क्यों आती हैं? पूज्य महाराज जी ने स्पष्ट किया कि प्रतिकूलताएँ भक्तों को परिपक्व करने के लिए आती हैं। भक्त भारी से भारी प्रतिकूलता को भी भगवान का कृपा प्रसाद मानकर आगे बढ़ जाते हैं। यदि भरोसा दृढ़ हो, तो तलवार भी तलवार नहीं रहती, बल्कि Bageshwar Dham के भक्तों के लिए गले का हार बन जाती है।

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